कहा- पिछली बार किसानों को वार्ता के बीच में छोड़कर भागी केंद्र सरकार करे वार्ता की पहल
2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के सरकारी दावे की बजट ने खोली पोल
CHANDIGARH: सांसद दीपेन्द्र हुड्डा आज रोहद टोल किसान धरने पर पहुंचे और आन्दोलन को समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि बजट ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के सरकारी दावे की पोल खोल दी है। सरकार ने कृषि बजट में 6 हजार करोड़ रुपये की कटौती करते हुए पिछले साल के 1.54 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 1.48 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। इस स्पीड से देश के किसान की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य कैसे हासिल होगा ? उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को कुचलने व बदनाम करने के सारे सरकारी हथकंडे विफल हो चुके हैं। यह आंदोलन पहले से ज्यादा बड़ा और मजबूत हुआ है। सरकार आंदोलनकारियों की बिजली-पानी सप्लाई व इंटरनेट बंद करने की ओछी हरकत ना करे। प्रशासन आंदोलनकारियो को हर जरूरी मानवीय सुविधा मुहैया करवाए, ये उसकी जिम्मेदारी है।
दीपेन्द्र हुड्डा ने देश के सभी किसानों और किसान संगठनों से अपील की कि वे तिरंगे के नीचे एकजुट होकर कृषि कानूनों के खिलाफ संविधान के दायरे में शांतिपूर्ण संघर्ष करें। किसानों की मांगें जायज हैं हम उनका पूर्ण समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि पिछली बार हुई आखिरी दौर की वार्ता की टेबल पर किसानों को बीच में ही छोड़कर सरकार भाग गई थी। किसान तो अपनी मांगों के समाधान की उम्मीद लगाए घंटों इंतज़ार करते रहे। इसलिए अब सरकार का दायित्व बनता है कि वो बातचीत की पहल करे और किसानों की मांगें माने।
उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानो की मांगे मानकर समाधान निकालने की बजाय सरकार निरंकुश सत्ताबल की जोर-आजमाइश कर रही है जो कतई बर्दाश्त नही होगी। इतना ही नहीं, सत्ताधारी दल किसान और किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाये हुए है। दिल्ली आने-जाने वाले रास्तों में बाधाएं खड़ी की जा रही हैं और रास्ते रोके जा रहे हैं जिससे आम लोगों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से संवेदनशील ढंग से आन्दोलन ख़त्म करवाने की दिशा में पहल करने की मांग की।
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सिंघु बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर आदि धरनास्थलों पर बिजली-पानी की व्यवस्था को बाधित करने की ख़बरें आ रही हैं। आंदोलनरत किसानों की बिजली-पानी काटना, सड़कें खोदना, किसानों की राह में लोहे की मोटी-मोटी कीलें बिछाना, कंटीले तारों से बाड़बंदी करना, बदनाम कर झूठे व संगीन मुकदमे दर्ज करना प्रजातंत्र में जायज नहीं है। सरकार छोटे मन और ऐसे ओछे हथकंडों से नहीं बल्कि अन्नदाता का दिल जीतकर समाधान निकाले।