CHANDIGARH: कोरोना महामारी ने हर किसी की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो हार नहीं मानते हैं। रुकना उनकी आदत में नहीं होता है। आपदा को अवसर में बदल देते हैं। खुशी तब दोगुनी हो जाती है जब इस तरह का जज्बा ग्रामीण पृष्ठभूमि मे देखने को मिलता है।
ऐसी एक कहानी है मीना राहंगड़ाले की। मध्य प्रदेश के बालाघाट के चिचगांव नामक गाँव में कुछ आदिवासी महिलाओं ने मिलकर एक राइस मिल का संचालन शुरू किया है। लॉकडाउन से पहले ये महिलाएं इस मिल में काम करती थीं, और अब वो इसी मिल का संचालन कर रही हैं।
सभी महिलाएं कोरोना से पहले दिहाड़ी पर काम करती थीं, कोरोना महामारी के कारण जब उनकी आय प्रभावित हुई तो, वे निराश नहीं हुई। इन महिलाओं में से एक मीना राहंगडाले ने अपने साथ कई महिलाओं को जोड़कर एक स्व सहायता समूह का गठन किया। उन्होंने समूह का नाम ‘योग्यता’ रखा।
योग्यता स्व सहायता समूह की अध्यक्ष मीना राहंगड़ाले ने बताया- “कुछ पैसा हमें सहयोग राशि के रूप में मिला, कुछ पैसा कर्ज लेकर हमने बड़ी मिल लगाने का निर्णय लिया। सहयोग राशि समूह के नाम पर मिली। और आज मिल तेजी से दौड़ रही है।”
आजीविका मिशन की मदद से योग्यता स्व सहायता समूह ने उसी राइस मिल को खरीदा, जिसमे ये महिलायें काम कर रही थीं। और एक जुट होकर काम शुरू किया। आज ये महिलायें न सिर्फ अपनी राइस मिल चला रही हैं, बल्कि इस अविधि के भीतर उन्होंने 3 लाख से अधिक का मुनाफा भी कमाया है।
समूह की एक सदस्या वर्षा ने कहा है कि – हमारे इस प्रयास ने दूसरी कई महिलाओं को प्रेरणा दी है की, वो भी ऐसा कुछ काम कर सकती हैं।
परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश बेदुआ ने बताया कि- कोरोना के चलते जब इकाइयां बंद हो गई थी। स्व सहायता समूह की इन दीदियों ने मिलकर,आजीविका मिशन से प्राप्त राशि के अतिरिक्त किसान क्रेडिट कार्ड और खुद का पैसा इकठ्ठा किया। 10 लाख की कीमत वाली राइस मिल इकाई को समूह ने खरीद लिया। और आज प्रति महिना 20 से 25 हजार शुद्ध मुनाफा कमा रही हैं।
‘मन की बात’ कार्यक्रम में जब प्रधानमंत्री ने इस समूह की कामयाबी का जिक्र किया तो, समूह का हौसला और बुलंद हो गया। उन्होंने इसके बाद दुगनी खुशी के साथ आगे बढने का निर्णय लिया। मीना मुश्किलों को चुनौती में बदलकर न सिर्फ स्वयं आत्मनिर्भर बनी हैं बल्कि अपनी जैसी कई महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है। ~(PBNS)