गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाशोत्सव में शामिल हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा

शीश नवाकर सच्चे पातशाह से की मानव जाति के लिए सुख-समृद्धि की अरदास
कहा- गुरु तेग बहादुर जी सिर्फ एक धर्म के नहीं, बल्कि पूरी मानवता के गुरु व पूजनीय

PANIPAT, 24 APRIL: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आज पानीपत में आयोजित हिंद की चादर गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाशोत्सव में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में उन्होंने शीश नवाकर सच्चे पातशाह से मानव जाति की सुख-समृद्धि के लिए अरदास की। इस मौके पर हुड्डा ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी सिर्फ एक धर्म के नहीं बल्कि पूरी मानवता के गुरु और पूजनीय हैं। उन्होंने उस दौर में देश, धर्म व मानवता के लिए बलिदान दिया जब देश मुगलों के अत्याचार झेल रहा था।

पानीपत में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार को सलाह दी व मांग की कि ऐसी महान विभूति की यादगार में हरियाणा स्थित धमतान साहिब में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कॉलेज व रिसर्च सेंटर बनाया जाए ताकि गरीब व दीन-दुखी की सेवा हो सके।

हड्डा ने कहा कि यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि हरियाणा प्रदेश आज हिंद की चादर गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाशोत्सव मना रहा है। गुरु तेग बहादुर जी साहस, त्याग, बलिदान और आपसी प्रेम की वो मिसाल थे, जिन्हें मानव जाति कभी नहीं भुला सकेगी। गुरु जी की शिक्षा और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। आज भी हमें उनके जीवन से धार्मिक सहिष्णुता, एकता और आपसी भाईचारे की सीख लेने की आवश्यकता है।

समूची मानवता के इतिहास में त्याग व बलिदान की इससे अनूठी मिशाल कही नहीं मिलती। जिनके दादा गुरु अर्जुन देव जी, खुद और उनकी पत्नी माता गुजरी जी, सुपुत्र गुरु गोबिन्द सिंह जी और उनके चारों सुपुत्र बाबा जुझार सिंह, अजीत सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपने धर्म, सिद्धांत, संस्कृति और स्वाभिमान के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उन्होंने “सिर दिया पर सार न दिया” अन्यायी और क्रुर औरंगजेब का गरुर तोड़ दिया।

गुरू तेग बहादुर जी के जीवन काल से जुड़े पहलुओं के बारे में बोलते हुए हुड्डा ने कहा कि सिख धर्म का सारा इतिहास हिन्दुओं के लिए तड़प, सहानुभूति और बलिदान का रहा है| गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी तक सभी गुरुओं को दो मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा।

एक तरफ देश में फैले अंधविश्वास, सामाजिक बुराईयां, कुरितियां, रुढ़िवादिता और धार्मिक भावनाओं के शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया। दूसरी तरफ मुगल शासकों के जुल्म, जबरदस्ती, अन्याय और धर्म परिवर्तन की चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया। उस दौर में उन्होंने अपने अनुयायियों में साहस, संगठन, समानता और बलिदान की भावना जगाई। उन्होंने ‘देग-तेग’, मीरी-पीरी की शानदार परंपरा को विकसित किया। लंगर और संगत प्रथा से संगठन, समानता और सौहार्द का निर्माण हुआ।

गुरु तेग बहादुर जी का हरियाणा प्रदेश से विशेष संबंध रहा है। जब गुरुजी प्रथम गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और सिद्धान्तों के प्रचार के लिए पूर्व दिशा में गए तो कुरुक्षेत्र, झिंवरहेड़ी (यमुनानगर) आदि स्थलों पर भी गए| जब गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान देने तलवंडी साबो के गुरुद्वारा दमदमा साहिब से चले और धमतान साहिब (जींद), जींद, लाखनमाजारा (रोहतक) होते हुए आगरा पहुंचे, जहां उनको गिरफ्तार कर पिंजरे में दिल्ली लाया गया| गुरुद्वारा शीशगंज के चांदनी चौक में उन्होने अपना बलिदान दिया|

उनके कटे हुए शीश को लेकर आनंदपुर साहिब लाया जा रहा था तो रास्ते में बढ़ खालसा (सोनीपत) के एक अनुयायी ने अपना शीश कटाकर पीछा करती हुई मुगल फौज को दिया और गुरुजी के शीश का उनके सुपुत्र श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने श्री आनंदपुर साहिब में अंतिम संस्कार किया|

हुड्डा ने बताया कि सन 1674 में जबरन धर्म परिवर्तन से पीड़ित कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादूर जी के पास रक्षा के लिए आए। गुरुजी ने मुगलों को चुनौती दी कि यदि वे पहले मुझसे धर्म परिवर्तन करा सकते है तो दूसरों को मजबूर करें। औरंगजेब ने इसे अपनी रक्षा के खिलाफ चुनौती माना। फलस्वरुप गुरुजी का उनके तीन साथियों (भाई मतीदास, भाई सतीदास और बाबा दयाला जी) सहित चांदनी चौक दिल्ली में सिर काट कर शहीद कर दिया। यह मानवता के इतिहास में एक अनूठी और अकेली मिशाल है कि किसी एक धार्मिक सम्प्रदाय के गुरु ने दूसरे धर्म के अनुयायियों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बलिदान दिया हो| और इस पावन पवित्र मौके पर लगभग सभी कांग्रेसी विधायक भी उनके साथ कार्यक्रम में मौजूद रहे।

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