राजहठ छोड़कर राजधर्म निभाए भाजपा सरकारः दीपेन्द्र हुड्डा

दीपेंद्र हुड्डा

• कहा- जिद पर न अड़े केंद्र सरकार, किसानों की सारी मांगें जायज हैं उन्हें स्वीकार करे

CHANDIGARH:  राज्य सभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार हठधर्मिता पर आ गई है। उसका रवैया पूरी तरह दुराग्रहपूर्ण है। सरकार ने एक बार भी ऐसा संकेत नहीं दिया कि वो किसानों की मांगों पर सकारात्मक रूख अपनाएगी। सरकार के अड़ियल रवैये से ऐसा लगता है कि वो चंद सरमायेदारों के हाथों की कठपुतली बनी हुई है। जिस तरह से उद्योग और व्यापार पर चंद घरानों का कब्ज़ा होता जा रहा है, उसी तरह सरकार कृषि जगत को भी चंद सरमायेदारों के हाथों में सौंप देना चाहती है। उन्होंने कहा कि किसानों की ऐसी कोई मांग नहीं है जो सरकार न मान सके। अपनी जिद पर न अड़े सरकार, किसानों की सारी मांगें जायज हैं उन्हें स्वीकार करे। अगर सरकार सचमुच किसानों का भला चाहती है तो सबसे पहले तीनों कानूनों को रद्द करे, किसान संगठनों को बुलाकर उनकी समस्याओं को जाने। फिर समिति बनाकर व्यापक बहस के बाद किसानों की सहमति से क़ानून बनाया जाए।

• अगर सरकार सचमुच किसानों का भला चाहती है तो सबसे पहले तीनों कानूनों को रद्द करे

उन्होंने कहा कि सरकार ने जो कमेटी बनाने की पेशकश की है वो प्रक्रिया संसद में कानून बनाने से पहले की है। जिसका सरकार ने पूरी तरह से उल्लंघन किया। उन्होंने बताया कि वो स्वयं कृषि मामलों के स्थायी संसदीय समिति के सदस्य रहे हैं और कृषि से संबंधित बिलों के लिये ये परंपरा रही है कि सभी किसान संगठनों को इस पर चर्चा के लिये आमंत्रित किया जाता है। उनकी राय ली जाती है, विशेषज्ञों की राय जानी जाती है और तब जाकर बिल में आवश्यक सुधार के बाद उसे सर्वसम्मति से पारित किया जाता है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार इन 3 कृषि कानूनों को अब तक के सबसे बड़े कृषि सुधार के तौर पर बता रही है तो फिर इन्हें अध्यादेश के जरिये क्यों लाया गया? कोरोना की आड़ में अध्यादेशों को क्यों जारी किया गया? इन बिलों की मांग किसने की थी? किसानों की मांगे बेहद सीधी हैं। MSP का कानूनी प्रावधान किये बिना किसी क़ानून का कोई मतलब नहीं। सरकार समिति के जाल में उलझाकर किसानों की मांगों को ठंडे बस्ते में डालने और उन्हें गुमराह करने की कोशिश न करे।

• किसानों की ऐसी कोई मांग नहीं है जो सरकार न मान सके

दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार जुबानी कह रही है कि MSP रहेगी, सवाल ये है कि क्या सरकारी खरीद MSP पर होगी? क्योंकि, सरकार FCI के बजट में व्यापक कटौती कर रही है। 22 फसलों पर MSP की घोषणा की गयी लेकिन जमीनी सच्चाई अलग ही है और कुछ ही फसलों को वास्तव में MSP पर खरीदा जा रहा है। इसी साल सरकार ने FCI का बजट घटाकर आधा यानी, 1.55 लाख करोड़ से 78 हजार करोड़ कर दिया। इसके चलते सरकारी एजेंसियों द्वारा MSP पर खरीद में व्यापक कमी आयेगी और निजी खरीददार किसानों की फसलें औने-पौने भाव पर खरीदेंगे।

उन्होंने आगे कहा कि प्रजातंत्र में कोई स्थायी नहीं रहता। समय के साथ सरकारें बदलती रहती हैं। वक़्त बदलते वक़्त नहीं लगता। भारत की आधे से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है। किसान तो यहाँ तक कह रहे हैं कि फसल खरीद का जो वर्तमान ढांचा है उसे सरकार न तोड़े। MSP वृद्धि के सवाल के जवाब में कहा कि NDA शासनकाल में MSP में जो बढ़ोत्तरी हुई है वो UPA सरकार के 10 वर्षों के मुकाबले बेहद कम रही है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि UPA सरकार के समय धान की MSP औसत 13% सालाना बढ़ी, जो NDA के समय केवल 5.5% औसत बढ़ी है। इसी तरह UPA सरकार के समय गेहूं की MSP सालाना 12% बढ़ी, जो अब औसत 5.4% और दालों की MSP 22% बढ़ी, जो NDA के समय केवल 5.4% की औसत दर से बढ़ी है।

• हठधर्मिता पर अड़ी सरकार का रवैया दुराग्रहपूर्ण

दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि केंद्र और खासकर हरियाणा सरकार का रवैया किसानों के प्रति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण रहा है। किसान आन्दोलन में देश के किसानों के लिए हरियाणा सरकार खलनायक के रूप में उभरी है। संविधान के दायरे में शांतिप्रिय ढंग से चल रहे किसान आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार किसानों पर मुक़दमे दर्ज करा रही है। उन्होंने सरकार को चेताया कि जोर-जबरदस्ती से किसानों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता, उनके अधिकारों को छीना नहीं जा सकता। सरकार का दमनकारी रवैया आने वाले समय में उसे महंगा पड़ेगा।

सांसद दीपेन्द्र ने यह भी कहा कि एक तरफ सरकार बेमन से बातचीत का दिखावा कर रही है और दूसरी तरफ इन तीन किसान विरोधी कानूनों को सही भी ठहरा रही है। यही कारण है कि किसानों को सरकार की जुबानी बात पर भरोसा नहीं हो रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी और एमएसपी से कम पर खरीदने वाले के लिए सजा का कानूनी प्रावधान जब तक नहीं होगा तब तक किसी क़ानून का किसानों के लिए कोई औचित्य नहीं है।

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