पूर्व मेयर कमलेश ने एडवाइजर को लिखा पत्रः बिजली विभाग के निजीकरण पर जताया कड़ा विरोध

CHANDIGARH: चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मेयर श्रीमती कमलेश बनारसी दास ने चंडीगढ़ के प्रशासक के सलाहकार को एक पत्र लिखकर चंडीगढ़ में बिजली विभाग के निजीकरण (privatization) का कड़ा विरोध किया है। साथ ही बिजली विभाग के निजीकरण से होने वाले नुकसान को लेकर भी आगाह किया है।

पूर्व मेयर श्रीमती कमलेश बनारसी दास ने अपने पत्र में कहा है कि आम जनता चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा बिजली को प्राइवेट हाथों में दिए जाने के विरोध में है, क्योंकि कोई भी सरकारी विभाग प्राइवेट हाथों में जाने से कभी भी जनता को फायदा नहीं हुआ। सिर्फ उस व्यक्ति को फायदा होता है, जो सरकारी विभाग को खरीद लेता है, जबकि सरकार व सरकारी विभाग जनता के लिए और जनता को सुविधा देने के लिए है। उन्होंने कहा कि जब से चंडीगढ़ बना है तब से बिजली विभाग प्रशासन द्वारा चलाया जा रहा है और इसको लेकर कोई कंप्लेंट भी नहीं आई। चंडीगढ़ में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन सबसे अच्छा है और बिजली डिपार्टमेंट को करीब 150 करोड़ रुपए का फायदा भी हर साल हो रहा है, फिर भी बिजली विभाग को प्राइवेट करने की क्या जरूरत आन पड़ी है, यह सभी के समझ से बाहर है।

पूर्व मेयर ने इस पूरे मामले में बड़े घपले की बू आने की बात कहते हुए कहा है कि फायदे वाले विभाग को निजी हाथों में बेचना यही इशारे कर रहा है। क्योंकि चंडीगड़ में बिजली विभाग की करीब छह हजार करोड़ रुपए तक की प्रॉपर्टी है। कई दफ्तर हैं। ट्रांसफार्मर हैं, सबकुछ जोड़ दिया जाए तो साफ है कि आखिरकार चंडीगढ़ प्रशासन फायदा किसको पहुंचाना चाह रहा है। श्रीमती कमलेश ने कहा कि बिजली विभाग को प्राइवेट करने से चंडीगढ़ की जनता को बहुत परेशानी होगी। उदाहरण के तौर पर जब से स्ट्रीट लाइट को प्राइवेट किया गया है, तब से पूरे चंडीगढ़ में कोई भी उसका दफ्तर नहीं है, न किसी को पता है कि उसका फोन नंबर क्या है। उसको कंप्लेंट करने के लिए गुजरात में फोन करना पड़ता है। कई दिनों तक तो कंप्लेंट पर action नहीं होता। अभी तो अगर लाइट चल जाती है तो लोग फटाफट फोन कर देते हैं कि यहां लाइट चली गई है, यहां तार जल गई है, यहां यह समस्या हो गई है लेकिन प्राइवेट करने से लोगों को सुविधा नहीं, बल्कि समस्या होगी और बिजली के रेट भी बढ़ जाएंगे। इसलिए बिजली विभाग को प्राइवेट करने से रोका जाए। प्रशासन जनहित में फैसला ले। जनहित की अनदेखी न करे।

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