हास्य व्यंग्यः मेरी मोटर साइकिल और गणतंत्र दिवस

सुबह-सुबह हवा बहुत अच्छी थी। बाहर निकले तो देखा, हमारी मोटर साइकिल हवा हो चुकी थी। हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई और अपनी भी हवा,  हवाई हो गई। रिपोर्ट लिखाने भागे-भागे पहुंचे  थाने।

मुंशी जी व्यस्त थेे, कंप्यूटर में व्यस्त थे । हम चोरी से त्रस्त थे । बुरे ग्रहों से ग्रस्त थे। हौसले सारे पस्त थे। उन्होंने हमें अनदेखा किया। कंप्यूटर पर और गौर किया। शायद वे कंप्यूटर पर वही तफ्तीश कर  रहे थे, जो कर्नाटक की विधान सभा में  कुछ देश -भक्त विधायक अपने मोबाइल पर कुछ साल पहले, कुछ  खोज रहे  थे।

मेरे दोबारा नमस्कार करने पर उन्होंने मुंडी घुमाई, गुस्से से लहराई । आई-टेन कार की बत्तियों जैसी आखें घुमाईं। हम कन्फ्यूज हो गए। कुछ क्षण बाद, बात समझ आई। वे हमसे मुखातिब नहीं अपितु पास बैठी महिला कांस्टेबल का निरीक्षण कर रहे थे। हमने फिर नमस्कार करके अर्ज किया, ‘इंस्पैक्टर साहब! एफ.आई.आर. लिखवानी है।’ उन्होंने ऐसा रिएक्शन दिया मानो हमने उनसे रिश्वत मांग ली हो।
के है ?, हवलदार ने पूछा।
रात घर के बाहर से मोटर साइकिल चोरी हो गई।’

वे उबल पड़े, ‘बोल तो मैं के करुं ? संगली पाके नहीं रख सकते ? पुलिस इब थारे वास्ते ही वेली बैठी है ? पहले खुद ढूंढो। मिल जाए तो बरामदगी लिखवा देना। फिर एफ.आई आर. भी लिख देंगे तेरी।
‘ एफ.आई. आर. तो पहले लिखी जाएगी सर। ’
‘तू मन्ने कानून सिखाता है। एफ.आई. आर. नहीं , डी.डी.आर. होती है। तू मन्ने यो बता इस शहर में इतनी लग्जरी कारें खड़ी हैं, जिसका नंबर लेने के लिए लोग 10-10 लाख देने को उबले पड़े हैं, चोर क्या तेरी ही रामप्यारी उठाएगा। कितनी पुरानी थी ?’
‘ पांच साल….’
‘ बावले 5 साल सरकार नी चलती, तेरी फिटफिटी चल गई। इब क्या जान लेनी थी उस बेचारी की ? ये तो शुकर कर, उस चोर का जिसने तेरा भार हल्का कर दिया। ठीक है कल आइयो। देखेंगे तेरा केस।’
’कल’ ?

‘ हां कल ….टु मारो । तने पता है पुलिस महकमा कितना बिजी है। 7 मर्डर केस, 5 रेप केस, 99 छेड़छाड़ के, 6 किडनैपिंग के, 25 स्नैचिंग के, 30 डाउरी के, 50 पड़ोसियों के झगड़ों के , 150 प्रापर्टियों के …. ओैर गिनाउं… और  मंत्रियां के  केस तू सॉल्व करेगा ? उप्पर से 15 अगस्त , गांधी जी का जन्मदिन, 26 जनवरी वगैरा-वगैरा हर साल आ जावे है। किसान आन्दोलन ने अलग से महारी नाक में दम दे राख्या सै। इब तू आपी बता इब किसानां के ट्रैक्टर रोकूं, किसानां नूं रोकूं….. तेरा मोटर  साइकिल ढूंढूं या परेड मां सलूट मारूं ?’

हम देश की बड़ी-बड़ी समस्याएं सुनकर लौट के बुद्धू घर को आए। अगले दिन फिर हाजरी भरी।
मैंने कहा, इंस्पैक्टर साहब! मैं एफ.आई.आर. कंप्यूटर पर टाइप करके ले आया हूं। वह नाराज होकर बोला कि अगर कंप्यूटर जानता कि रिपोर्ट कैसे लिखते हैं…महकमा हमें यहां क्यों बिठाता, किस बात के पैसे देता है महकमा ? रिपोर्ट लिखने के ! तू तो इस तरियां कह रहा है कि इधर मन्ने तेरी रिपोर्ट लिखी उधर चोर डर के मारे तेरी बाइक घबरा के तेरे घर के अग्गे सजा जाएगा ?

मैंने फिर प्रार्थना की कि सर एफ.आई.आर. लिखाना तो जरूरी है। वह फिर उबल पड़ा ,‘ तू मुझ से ज्यादा कानून जानता है। हवा सिंह को कानून सिखाता है ? मुझ से बहस करता है ?’
मैंने कहा, नहीं सर ! आप तो खुद कानून हो। आपके आगे आज तक कौन बोल पाया और टिक पाया है ? यह सुनते ही ,उनकी सवा आठ बजाती मूंछें, 10 बजकर 10 मिनट का समय दिखाने लगीं।

‘ हूं ! इब आया न ऊंट हवा सिंह के नीचे। तू सीधा-सीधा बता, तुझे एफ.आई.आर. चाहिए या मोटर साइकिल ? रातभर में तूने बड़े-बड़े अफसरो से सिफारिश लगवाई। तू ऐसे समझ रहा है कि बड़े अफसर ने तेरी कंपलेंट पर मेरी प्रोमोशन कर देनी है। किसी ने लिखी ? रात नफे सिंह का फोन आया था, तेरी सिफारिश कर रहा था। दूर की रिश्तेदारी है। एक ही गांव के हैं हम। तेरी लुगाई और उसकी ….दोनों सहेलियां हैं। इब एक बार फिर सोच ले कि आम खाने हैं कि पेड़ गिनने ?’

हमने कहा, जनाब आम का सीजन है तो नहीं, गन्ने का चल रहा है। चाहिए तो मोटर साइकिल ही।उसने अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। कई कमरों से गुजरते हुए हम एक ऐसे यार्ड में पहुंचे, जहां रेहड़ियां, साइकिलें, स्कूटर, बाइक्स, कारें , बसें, ट्रक यहां तक कि रोड रोलर भी सजे हुए थे।यह अलग बात थी कि किसी का कुछ बचा नहीं था। बस कुछ-कुछ बचा खुचा ही था। वह बाइक्स के ढेर के पास ले जाकर बोला कि इसमें से अपना ढूंढ  सके तो ढूंढ ले। काफी माथापच्ची के बाद मैंने उसे बताया कि इसमें मेरा व्हीकल नहीं है।

वह ढेर में से एक छांट कर बोला,‘ ये अच्छा है। बस 10 हजार दे देईयो। पांच-सात ऊपर लगा के बिल्कुल नया हो जाएगा। शान से दफ्तर जाइयो।
‘अगर इसके मालिक ने पहचान लिया ?‘
‘ तो केस तो घूम फिर के हवा सिंह के पास ही आवेगा। समझौता करवा देंगे। तुझे यहां से और अच्छा पीस दे देंगे। तेरा भी काम चल जाएगा। उसको खोई हुई चीज मिल जाएगी। यहां कुछ जगह भी खाली हो जाएगी।’

अगले दिन समाचार पत्रों में हवा सिंह की कड़क वर्दी में फोटो छपी हुई थी। मैं गणतंत्र दिवस के टी.वी. कार्यक्रम में देख रहा था कि हवा सिंह राज्यपाल के सामने छाती फुलाकर जबरदस्त सैल्यूट मार रहा है। उधर से घोषणा हो रही है…. इस वर्ष का पुलिस मैडल हवलदार हवा सिंह को उनकी कर्तव्य निष्ठा, पद के प्रति ईमानदारी, मेहनत व लगन से डयूटी करने और इलाके में क्राइम ग्राफ को नीचे लाने और विभाग का नाम ऊंचा करने के लिए प्रदान किया जा रहा है।
हमने भी नारा लगाया- मेरा भारत महान, सबका हो कल्याण।

  • मदन गुप्ता सपाटू, 458, सैक्टर-10, पंचकूला, मो.- 9815619620
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