चंडीगढ़ में लोकसभा चुनाव कैसे जीतेगी भाजपाः कालोनियों के मुद्दे पर पार्टी में ही अरुण सूद की घेराबंदी शुरू, हाईकमान तक पहुंचा मामला !

मोदी के जन्मदिवस पखवाड़े में भी एकजुट नहीं हुई चंडीगढ़ भाजपा, महज गुटीय शक्ति प्रदर्शन तक सिमटे कार्यक्रम

CHANDIGARH, 1 OCTOBER: चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा में लंबे समय से सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। गुटबाजी व आपसी खींचतान के मामले में यहां प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के मुकाबले भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अब तो इसे ढंकने-छिपाने की कोशिशें भी नाकाम होती दिख रही हैं। हाल ही में शहर की पुनर्वास कालोनियों के निवासियों के मकान के मालिकाना हक के मामले को लेकर पार्टी की हो रही किरकिरी का मामला भी अब भाजपा के केंद्रीय नेताओं तक पहुंच गया है। पार्टी हाईकमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पखवाड़े तक के कार्यक्रमों में भी चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा इकाई के बिखराव से नाराज बताई जा रही है। पार्टी में ही सवाल उठाए जा रहे हैं कि भाजपा ऐसे कैसे चंडीगढ़ में 2024 का लोकसभा चुनाव जीत पाएगी ?

चंडीगढ़ भाजपा में हैं चार गुट

चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा में चार गुट पूरी तरह स्पष्ट हैं। इनमें एक खेमा चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद का है तो दूसरा खेमा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय टंडन का है। तीसरा गुट चंडीगढ़ के पूर्व सांसद सत्यपाल जैन का है और चौथा गुट सांसद किरण खेर का है। इन चारों गुटों की आपसी खींचतान समय-समय पर सामने आती रही है। अब 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर चारों गुटों की गतिविधियां तेज होने लगी हैं। इस गुटबाजी का मूल कारण भी लोकसभा चुनाव ही है। चारों गुटों के नेतृत्वकर्ता सांसद की टिकट के दावेदार हैं और मौका लगते ही एक-दूसरे की इस दावेदारी को कमजोर करने में नहीं चूक रहे हैं।

कालोनियों के मामले में हुई किरकिरी

चंडीगढ़ में विरोधी राजनीतिक दलों ने भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव के उसके घोषणा पत्र व जनता से किए गए वायदों की विफलता को लेकर घेरना शुरू कर दिया है तो हाल ही में शहर की पुनर्वास कालोनियों के निवासियों के मकान के मालिकाना हक के मामले में भाजपा की खासी किरकिरी हो रही है, क्योंकि इस मामले में चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद व चंडीगढ़ प्रशासन के बयान बार-बार एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे हैं। प्रशासन मकानों के मालिकाना हक के मामले पर साइलेंट है तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद श्रेय लेने की मुद्रा में कह रहे हैं कि पुनर्वास कालोनियों के निवासियों को उनके मकान का मालिकाना हक देने के लिए चंडीगढ़ प्रशासन तैयार है। विरोधी राजनीतिक दल 2024 के लोकसभा चुनाव की खातिर इसे भाजपा का जुमला बता रहे हैं, क्योंकि प्रशासन अभी तक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद के बयान पर आधिकारिक मुहर नहीं लगा रहा है, जबकि अरुण सूद कह रहे हैं कि विरोधी राजनीतिक दल लोगों को गुमराह करके कालोनीवासियों को मिलने वाले अधिकार में बाधा पैदा कर रहे हैं, उन्हें डरा रहे हैं। कुल मिलाकर, अब यह मामला राजनीतिक मुद्दा बन गया है।

पार्टी हाईकमान तक पहुंचा मामला

भाजपा सूत्र बता रहे हैं कि कालोनी निवासियों के मालिकाना हक का मामला पार्टी हाईकमान तक पहुंच गया है, क्योंकि चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद के विरोधी इस मामले को राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील मान रहे हैं। उनका कहना है कि जब भी यह मामला मीडिया के जरिए सुर्खियों में आता है, अरुण सूद व चंडीगढ़ प्रशासन के बयानों में एकरूपता न होने से कालोनियों में पार्टी की स्थिति असहज हो जाती है। उनका मानना है कि जब पहले दिन से ही प्रशासन की तरफ से सार्वजनिक तौर पर इस मामले में स्पष्टता नहीं हुई तो पार्टी को सिर्फ इसलिए जल्दबाजी में आगे आकर श्रेय की होड़ में नहीं उलझना चाहिए था कि दूसरे किसी राजनीतिक दल ने यह मामला उठा लिया है। सूद के विरोधियों का मानना है कि चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा इकाई इस मामले में विरोधी दलों के ट्रैप में फंस गई है तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में कालोनियों के भीतर यह मुद्दा भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।

मोदी के जन्मदिवस पखवाड़े में सभी गुटों ने बनाई बराबर दूरी

चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा में गुटबाजी का ताजा आलम इस बात से भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पखवाड़े के कार्यक्रमों में भी पार्टी कहीं भी एकजुट नहीं दिखी है, जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर है। इस पखवाड़े में चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा ने कुछेक कार्यक्रम तो किए लेकिन इन कार्यक्रमों में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद व उनका खेमा ही नजर आया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय टंडन के गुट ने अलग कार्यक्रम किए। पार्टी में गुटीय लड़ाई किस कदर हावी है, इसकी गवाही इन कार्यक्रमों में लगे बैनर भी दे रहे थे। अरुण सूद के खेमे के कार्यक्रमों के बैनर से संजय टंडन व सत्यपाल जैन गायब थे तो संजय टंडन गुट के कार्यक्रमों के बैनर से अरुण सूद व सत्यपाल जैन नदारद दिखे। यही नहीं, किसी तटस्थ ग्रुप ने कार्यक्रम में अरुण सूद व संजय टंडन दोनों को बुला लिया तो अरुण सूद तब पहुंचे जब टंडन वहां नहीं थे तथा टंडन तब पहुंचे जब सूद वहां नहीं थे। कुछ बैनरों पर तो सांसद किरण खेर को भी जगह नहीं दी गई। इस तरह मोदी के जन्मदिवस पखवाड़े के कार्यक्रम यहां महज भाजपाई गुटों के शक्ति प्रदर्शन के प्रयास के रूप में नजर आए और यह शक्ति प्रदर्शन पार्टी के बजाय निजी लोकप्रियता बढ़ाने तथा लोकसभा चुनाव में अपनी-अपनी उम्मीदवारी के दावे को मजबूत करने का प्रयास करते दिखे।

कमजोर पड़ रहा किरण खेर का खेमा

सांसद किरण खेर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पखवाड़े में चंडीगढ़ से बाहर ही रहीं। शहर में किरण खेर की बढ़ती निष्क्रियता से उनका खेमा भी टूटने लगा है। उनके गुट से जुड़े भाजपाई अब सूद, टंडन व जैन खेमों में शिफ्ट होने लगे हैं। यही नहीं, यहां दूसरे राजनीतिक दलों में तोड़फोड़ की कोशिशों से हटकर भाजपा में अब आपसी गुटों में ही तोड़फोड़ के हालात भी बनने लगे हैं। कभी संजय टंडन के खास माने जाने वाले कुछ भाजपाई अब अरुण सूद के साथ खड़े दिखते हैं तो अरुण सूद के समर्थक रहे कई भाजपाई टंडन के खेमे में सक्रिय दिख रहे हैं। भाजपा सूत्र बताते हैं कि यह पूरी स्थिति पार्टी हाईकमान की जानकारी में आ चुकी है और इसे लेकर वह नाराज भी दिख रही है। इसके मद्देनजर पार्टी हाईकमान आने वाले दिनों में कुछ जरूरी कदम उठाने जा रही है। क्योंकि वह जानती है कि 2014 व 2019 का लोकसभा चुनाव चंडीगढ़ में भाजपा ने सिर्फ मोदी के नाम पर जीता। 2021 का नगर निगम चुनाव भाजपा की स्थानीय इकाई पर छोड़ा तो पार्टी नगर निगम की सत्ता से बेदखल होने की स्थिति में पहुंच गई थी।

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