भारत को चीन से सटे क्षेत्र में अपनी ताकत को और मजबूत करना चाहिए: के.जे. सिंह

1967 की जंग में भारत की जीत एशिया क्षेत्र में तबदीलियां लाई: पराबल दास गुप्ता 

CHANDIGARH: भारत की आज़ादी के बाद भारतीय सेना इतिहास और किताबें लिखने का रुझान शुरू हुआ, जोकि बहुत ही सराहनीय था। डोकलाम में भारत और चीन के दरमियान पैदा हुए तनाव के दौरान मीडिया द्वारा की जा रही चर्चाओं में 1962 की जंग के विवरण को ज़्यादा प्राथमिकता दी जा रही थी, जबकि 1967 में नाथुला और चौला में भारत और चीन के दरमियान हुई जंग जिसमें भारत द्वारा बेमिसाल जीत दर्ज की गई थी, का कहीं भी जिक़्र नहीं हो रहा था।

सबसे अधिक हैरानीजनक बात इस चर्चा की यह थी कि 1967 की जंग सम्बन्धी इतिहासकार और राजनैतिक वैज्ञानिक भी अनजान से प्रतीत हो रहे थे। जबकि इस जंग ने एशिया क्षेत्र में कई अहम तबदीलियाँ लाईं।इन शुरूआती शब्दों के साथ मिलीट्री लिटरेचर फेस्टिवल 2020 के दूसरे दिन की शुरूआत पराबल दासगुप्ता द्वारा लिखी किताब ‘वॉटरशैड 1967-इंडियाज़ फॉरगेट्न विकटरी ओवर चाइना’ पर चर्चा के लिए रखे गए सैशन के दौरान संचालक लैफ्टिनैंट जनरल ( सेवामुक्त) एन.एस. बराड़ द्वारा चर्चा की शुरूआत की गई।

विचार-विमर्श में भाग लेते हुए वॉटरशैड 1967-इंडियाज़ फॉरगेट्न विकटरी ओवर चाइना’ के लेखक पराबल दासगुप्ता ने बताया कि जनरल सगत सिंह द्वारा 1965 में ईस्ट ज़ोन की कमांड संभालने के बाद चीन के साथ लगते सभी भारतीय इलाकों की पहचान की और पैटरोलिंग शुरू करवाई और यह यकीनी बनाया कि संकट की घड़ी में भारत क्षेत्र की निशानदेही करना आसान हो, जिससे चीन उसपर अपना अधिकार न पेश कर सके।

दासगुप्ता ने इस मौके पर 1967 की जंग की पृष्ठभूमि का जिक़्र करते हुए बताया कि चीन सरकार सिक्किम पर कब्ज़ा करने के लिए पाकिस्तान को मोहरा बनाकर ईस्तेमाल करना चाहता था। इसलिए चीन ने पाकिस्तान को अपने कब्ज़े अधीन कश्मीर में सडक़ें बनाने के लिए उकसाया, जिस पर भारत द्वारा ऐतराज़ किया गया। चीन ने इस सम्बन्धी हुई बातचीत में पाकिस्तान की मदद करते हुए यह पेशकश की थी अगर भारत कश्मीर, पाकिस्तान को दे दे तो उसके बदले में भारत को सिक्किम मिल जायेगा।

भारत द्वारा इस पेशकश को ठुकरा दिया गया था। जिसके बाद चीन ने भारत की ताकत को परखने के लिए कई चालें चली, जिससे भारत अपनी सारी सरहदों और फ़ौजी तैनाती बढ़ा दे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मामले को उठा सके और भारत को बातचीत के लिए मजबूर किया जा सके। परन्तु जब चीन अपनी सभी चालों में नाकाम रहा तो उसने फ़ौजी हमला कर दिया, जिसका भारतीय सेना द्वारा मुँह-तोड़ जवाब दिया गया और चीन पर जीत दर्ज की गई।

उन्होंने कहा कि इस जीत ने भारतीय सेना को एक ऐसे उत्साह से भर दिया जिसका मुकाबला करने में चीन अभी भी समर्थ नहीं हुआ और इस बात का सबूत हमें गलवान घाटी में घटी घटना से मिलता है। जहाँ हमारे बहादुर सैनिकों ने एक बार फिर चीनी सैनिकों को धूल चटा दी थी। बहस में भाग लेते हुए लैफ्टिनैंट जनरल (सेवामुक्त) के.जे. सिंह ने कहा कि मुझे ईस्ट कमांड में 1978 में काम करने का मौका मिला तो मुझे यह जानकर बहुत दुख हुआ कि 1967 की इस अहम जंग संबंधी लोगों को बहुत कम जानकारी थी।

उन्होंने बताया कि जनरल सगत सिंह ने चीनी हमले के बाद बिना किसी देरी के जवाबी कार्यवाही कर दी थी। उन्होंने इस मौके पर कहा कि मौजूदा समय में भारत को चीन के साथ लगते क्षेत्र में अपनी ताकत को और मज़बूत करना चाहिए। क्योंकि भारत हर क्षेत्र में चीन की बराबरी करता है वह चाहे ताकत की बात हो चाहे तकनीक की।

चर्चा में भाग लेते हुए लैफ्टिनैंट जनरल (सेवामुक्त) जे.एस. चीमा ने कहा कि भारत की इस जीत ने जहाँ भारतीय सेना में उत्साह भरा था वहीं चीन को भारत के साथ समझौता करने के लिए मजबूर करने के साथ-साथ सिक्किम को भारत का हिस्सा भी माना था। उन्होंने कहा कि इस जीत ने एशिया के क्षेत्र में बड़ी तबदीली लाई, जिसके अंतर्गत 1971 में बंगलादेश होंद में आ सका और इस लड़ाई में चीन ने पाकिस्तान का साथ न दिया।

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