जानें, आने वाले समय में भारत के पास कितनी वैक्सीन का होगा विकल्प

CHANDIGARH: भारत में अभी दो वैक्सीन को अनुमति मिली है, जिनमें कोविशिल्ड और कोवैक्सीन हैं, लेकिन आने वाले समय में लोगों को कई और वैक्सीन का विकल्प मिलेगा। इस बारे में लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डॉ. राजेंद्र के धमीजा ने कई अन्य वैक्सीन के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि हमारे देश में दो वैक्सीन को अनुमति दी गई है। कोविशील्ड और कोवैक्सीन को मिलाकर अभी तक साढ़े चार करोड़ लोगों को वैक्सीन लगी है, जिनमें करीब 4 करोड़ लोगों को कोविशील्ड और 50 लाख लोगों को कोवैक्सीन दी गई है। दोनों ही वैक्सीन सुरक्षित हैं।

बताना चाहेंगे अभी देश में कई वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है इसमें एक स्पूतनिक-वी (Sputnik-V) है जिसका ट्रायल अब खत्म हो गया है और अप्रूवल के लिए दिया गया है। इसके अलावा जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन अमेरिका में अप्रूव हो चुकी है और भारत में सीरम इंस्टीट्यूट में मैन्युफैक्चरिंग के लिए बात चल रही है। वहीं केरल की कंपनी डीएनए वैक्सीन बना रही है, यानी भविष्य में लोगों के पास कई विकल्प आने वाले हैं।

फार्मा कंपनी विरचौ ग्रुप, स्पूतनिक वी का करेगा उत्पादन

इस बीच भारतीय फार्मा कंपनी विरचौ ग्रुप (Virchow Group) रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन की 20 मिलियन डोज तैयार करेगा। द रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (आरडीआईएफ) ने बयान जारी कर कहा है कि उसने फार्मा कंपनी विरचौ के साथ साझेदारी की है। उन्होंने कहा कि वह हर साल भारत में वैक्सीन की 200 डोज तैयार करेगा।

बायोटेक की सह कंपनी है विरचौ

विरचौ बायोटेक की सह कंपनी 2021 की पहली छमाही में पूर्ण पैमाने पर व्यवसायिक उत्पादन शुरू करने की उम्मीद है। आरडीआईएफ के सीईओ कीरिल दिमित्रिव ने बताया कि भारत में स्पूतनिक वी के पूर्ण पैमाने पर स्थानीय उत्पादन की सुविधा के लिए यह समझौता दुनिया भर में वैक्सीन की आपूर्ति करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे पिछले हफ्ते आरडीआईएफ ने स्पूतनिक के कम से कम 200 मिलियन खुराक के लिए एक अन्य भारतीय दवा निर्माता स्टेलिस बायोफार्मा के साथ उत्पादन समझौते की घोषणा की।

आरडीआईएफ के अनुसार इस वैक्सीन का नाम सोवियत सैटेलाइट के नाम के बाद रखा गया है। साथ ही इसे 54 देशों में पंजीकृत कराया गया है। व्यापक स्तर पर क्लीनिकल ट्रायल्स होने से पहले मॉस्को ने अगस्त में वैक्सीन को पंजीकृत किया था। एक शीर्ष मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ की ओर से कहा गया है कि वह 90 प्रतिशत प्रभावी है और सुरक्षित है। ~(PBNS)

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