Medaram Jathara Festival 2022: भारत में सजता है एशिया का सबसे बड़ा जनजातीय उत्सव, जानें खासियत

NEW DELHI: भारत में एशिया का सबसे बड़ा जनजातीय उत्सव मनाया जाता है, जिसे ‘मेदाराम जतारा’ (Medaram Jathara Festival 2022) के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव में भारत की सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। त्योहार रूपी इस उत्सव की रंगीनियत देखने की खातिर यहां पर्यटकों का भारी हुजूम भी जुटता है। वाकयी यह उत्सव देखने लायक होता है, लेकिन भारत के तमाम शहरों में रहने वाली अधिकतर आबादी इससे महरूम रह जाती है। अब केंद्र सरकार ने ‘मेदाराम जतारा’ उत्सव को बढ़ावा देने का जिम्मा अपने कंधों पर लिया है। केंद्र सरकार अच्छी तरह जानती है कि यह हमारी सांस्कृतिक और सभ्यतागत मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। आइए अब विस्तार से जानते हैं इस उत्सव की खासियत के बारे में…

मेदाराम जतारा जनजातीय उत्सव (Medaram Jathara Festival 2022)

पवित्र और बहुप्रतीक्षित द्विवार्षिक उत्सव “मेदारम जतारा” का शुभारंभ इस बार 16 फरवरी, 2022 को हो गया जो कि 19 फरवरी, 2022 तक मनाया जा रहा है। ‘मेदारम गाद्दे’(मंच) पर सरलअम्मा के आगमन के साथ ही इस उत्सव की शुरुआत हुई।

कुंभ मेले के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला

बता दें, मेदाराम जतारा कुंभ मेले के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, जो तेलंगाना के दूसरे सबसे बड़े जनजातीय समुदाय- कोया जनजाति द्वारा चार दिनों तक मनाया जाता है। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत, केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि 2022 के दौरान आदिवासी संस्कृति और विरासत पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा।

देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में किया जाता है आयोजित

मेदारम जतारा देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है। सम्माक्का की बेटी का नाम सरलअम्मा था। उनकी प्रतिमा पूरे कर्मकांड के साथ कान्नेपल्ली के मंदिर में स्थापित है। यह मेदारम के निकट एक छोटा सा गांव है। सुबह पुजारी, पवित्र पूजा करते हैं।

ऐसे होती है पूजा अर्चना

पारंपरिक कोया पुजारी जिसे काका वाड्डे कहते हैं, पहले दिन सरलअम्मा के प्रतीक-चिह्नों जैसे आदरेलु या पवित्र पात्र और बंडारू या हल्दी और केसर के चूरे के मिश्रण को कान्नेपाल्ले से लाते हैं और उसे मेदारम में गाद्दे यानि मंच पर स्थापित करते हैं।

पारंपरिक संगीत और नृत्य भी बढ़ाता है उत्सव की शोभा

इस उत्सव की शोभा बढ़ाने के लिए पारंपरिक संगीत और नृत्य भी किया जाता है। जी हां, कार्यक्रम के दौरान पारंपरिक संगीत डोली जिसे ढोलक कहते हैं और अक्कुम यानि पीतल का मुंह से बजाने वाला बाजा व तूता कोम्मू जिसे सिंगी वाद्य-यंत्र और मंजीरा कहते हैं, की धुनों के बीच पूरा किया जाता है। इसके साथ-साथ नृत्य भी होता है। तीर्थयात्री इस पूरे जुलूस में शामिल होते हैं और देवी के सामने नतमस्तक होकर अपने बच्चों, आदि के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।

कब मनाया जाता है ये उत्सव ?

यह उत्सव दो साल में एक बार “माघ” यानि फरवरी के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। विभिन्न गांवों की कई अनुसूचित जनजातियां यहां इकट्ठा होती हैं, और लाखों तीर्थयात्री मुलुगु जिले में पूरे उत्साह के साथ त्‍यौहार मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। केवल इतना ही नहीं इस त्योहार को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं। वर्तमान में, जतारा त्‍यौहार द्विवार्षिक रूप से मनाया जाता है।

केंद्र ने 2.26 करोड़ का बजट किया था आवंटित

इस बार इस उत्सव के लिए केंद्र सरकार ने मेदारम जतारा 2022 से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के लिए 2.26 करोड़ रुपए मंजूर किए। मेदारम जतारा भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, जो तेलंगाना के दूसरे सबसे बड़े जनजातीय समुदाय- कोया जनजाति द्वारा चार दिनों तक मनाया जाने वाला कुंभ मेला है।

केंद्र सरकार के केंद्र में जनजातीय संस्कृति, परंपराएं त्योहार और विरासत

दरअसल, जनजातीय संस्कृति, परंपरा, त्योहार और विरासत जनजातीय कार्य मंत्रालय के कार्यकलाप के केंद्र में हैं। इसके जरिए केंद्र सरकार उत्सव को विश्व में नई पहचान दिलाना चाहती है। इस धन को मेदाराम, जनजातीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने, दीवारों पर चिलकालगुट्टा तथा भित्ति चित्र और सांस्कृतिक परिसर- मॉडल कोया जनजातीय गांव में स्थित संग्रहालय परिसर के लिए सुरक्षा दीवार तैयार करने, सप्ताह भर चलने वाले राज्य स्तरीय जनजातीय नृत्य महोत्सव के आयोजन, संग्रहालय का सुदृढ़ीकरण आदि के लिए किया जाता है। व्यापक रूप से आयोजित होने वाली अन्य आवश्यक गतिविधियों में कोया जनजाति के छोटे उत्सवों के संदर्भ में अनुसंधान और प्रलेखन, विभिन्न राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं का आयोजन तथा एमएसएमई इकाइयों को आर्थिक सहायता प्रदान करना भी शामिल है।

1996 में राजकीय त्यौहार किया गया घोषित

मेदाराम जतारा को 1996 में एक राजकीय त्योहार घोषित किया गया था। इस तरह के दुर्लभ अवसर को देखने के लिए दो साल तक इंतजार करने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए चार दिनों का मेदाराम जतारा सबसे शुभ आयोजन है। जनजातीय कार्य मंत्रालय की ओर से इस त्योहार के निरंतर समर्थन का उद्देश्य तेलंगाना के जनजातीय समुदायों और आगंतुकों के बीच जागरूकता तथा एक सामंजस्यपूर्ण संबंध कायम करना है। इसके अलावा, यह आदिवासियों को उनकी अनूठी जनजातीय परंपराओं, संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने तथा वैश्विक स्तर पर उनके आदिवासी इतिहास को बढ़ावा देने में सहायता करता है। यह एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना का भी प्रतीक है।

तेलंगाना की कोया जनजाति मनाती है यह उत्सव

मेदाराम जतारा उत्सव तेलंगाना की दूसरी सबसे बड़ी कोया जनजाती चार दिनों तक मनाती है। इस जनजातीय मेले के दौरान कोया जनजाती देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में उनकी प्रतिमा की पूजा अर्चना करते हैं। केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ इसे कोया आदिवासियों द्वारा तेलंगाना में आयोजित किया जाता है।

जनजातीय उत्सव से पर्यटन को भी मिल रहा बढ़ावा

इस जनजातीय उत्सव से पर्यटन को भी अच्छा बढ़ावा मिल रहा है। विदेशी पर्यटक इस उत्सव को देखने के लिए आ रहे हैं। इस विशाल उत्सव को ध्यान में रखते हुए एक निजी विमानन कंपनी के साथ मिलकर श्रद्धालुओं के लिए हनमकोंडा से मेदारम तक हेलीकॉप्टर सेवाएं भी शुरू की गई हैं। बताना चाहेंगे कि इस बार उत्सव के पहले दिन देश के कोने-कोने से करोड़ों श्रद्धालु और तीर्थयात्री जुटे हैं। करीब 30 लाख से अधिक श्रद्धालु सरलअम्मा के दर्शन को यहां आते हैं और मेदारम जतारा के दौरान विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय इस आयोजन की भरपूर सहायता कर रहा है और उत्सव के प्रत्येक कार्यक्रम की कवरेज कर रहा है। मंत्रालय तेलंगाना की अनुसूचित जनजातियों के विभिन्न पहलुओं को संरक्षित और प्रोत्साहित करता है। इस त्योहार का लक्ष्य है जनजातीय संस्कृतियों, उत्सवों और विरासत के प्रति लोगों को जागरूक करना और आगंतुकों और तेलंगाना के जनजातीय समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते को कायम रखना।

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