हरियाणा में आठवीं की बोर्ड परीक्षा करवाने के विरोध में एकजुट हुए प्रदेश के निजी स्कूल्स

कहा- विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों पर आर्थिक व बोर्ड परीक्षा का मानसिक बोझ गवांरा नहीं 

CHANDIGARH: हरियाणा सरकार द्वारा प्रदेश में थोपी गई आठवी कक्षा की बोर्ड की परिक्षा करवाने के विरोध में हरियाणा के विभिन्न प्राईवेट स्कूल संघ एकजुट हो गये हैं। निजी स्कूलों के प्रतिनिधियों का मानना है कि सरकार का यह तुगलकी फरमान स्कूली प्रबंधन के साथ साथ विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों तक को गवारा नहीं हैं जिसका वे विरोध करते हैं। बुधवार को चंडीगढ़ प्रैस कल्ब में आयोजित एक प्रैस कांफ्रेंस के दौरान प्रदेश भर के निजी स्कूलों की ऐसोसियेशनों – हरियाणा प्रोग्रेसिव स्कूल्स कांफ्रेंस (एसपीएससी), हरियाणा युनाईटिड स्कूल्स ऐसोसियेशन (एचयूएसए), हरियाणा प्राईवेट स्कूल्स ऐसोसियेशन (एचपीएसए), करनाल इंडिपेंडेंट स्कूल्स ऐसोसियेशन (केआईएसए) और रिकोगनाईज्ड एनऐडिड प्राईवेट स्कूल्स ऐसोसियेशन (आरयूपीएसए) के प्रतिनिधियों ने सरकार के इस आदेश के खिलाफ धावा बोला और अपनी स्थिति स्पष्ट की।

प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए एचपीएससी के उपाध्यक्ष सुरेश चन्द्र ने बताया कि सरकार का फरमान पूर्ण रूप से नियमों के विरुद्ध था जिसको लेकर निजी स्कूलों द्वारा जब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो सरकार ने हाथों हाथ इस आदेश को वापिस ले लिया और शिक्षा के अधिकार (राईट टू एज्युकेशन) 2022 में 17 जनवरी को संशोधन कर दोबारा से स्कूलों पर थोपने का काम किया है।

सुरेश चन्द्र ने कहा कि वे इस मंदी के दौर में विद्यार्थियों पर आर्थिक और परीक्षा के दबाव को लेकर मानसिक बोझ डालने के हक में नहीं हैं। आठवीं की बोर्ड परीक्षा का गठन कर आर्थिक बदहाली झेल रहा शिक्षा बोर्ड स्कूलों और अभिभावकों में आर्थिक बोझ डाल रहा है। प्रति स्कूल की रजिस्ट्रेशन के नाम पर पांच हजार रुपये का शुल्क, एनरोलमेंट पर एक सौ रुपये और प्रति विद्यार्थी परीक्षा शुल्क के लिये 550 रुपये निर्धारित कर बोर्ड ने पैसे कमाने का एक जरिया बना लिया है जिसे स्कूलों और अभिभावकों को बिल्कुल मंजूर नहीं है। प्रदेश में लगभग दो हजार निजी स्कूल है जो कि प्रति स्कूल पांच हजार की दर से लगभग एक करोड रुपये बनता है जबकि प्रदेश में लगभग साढे चार लाख आठवें के विद्यार्थियों से वसूली गई 550 रुपये प्रति विद्यार्थी की राशि लगभग पचीस करोड़ रुपये तक बन जाती है।

उन्होंने कहा कि अन्य शिक्षा बोर्ड से संबंधित स्कूलों में युगों से चली आ रही परम्परा जोकि नियमानुसार और संबंधित बोर्ड के आदेशानुसार क्रियान्वित है तो सरकार और बोर्ड उनसे छेडखानी क्यों कर रही है।

सुरेश चन्द्र ने सरकार को घेरते हुये आरोप लगाया कि दरअसल हरियाणा स्कूल एजुकेशन बोर्ड ने कोरोना काल में पूर्ण रूप से एज्युकेशन सर्टिफिकेट बेचने का काम किया है और असेसमेंट (स्कूलों द्वारा की गई आंतरिक मूल्यांकन) में पांच गुणा अंक देकर वाले फार्मूला लगाकर लगभग साठ हजार बच्चों को बेहतरीन अंक देकर वाहवाही लूटी है।

गत दिनों हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुज्जर द्वारा जारी ब्यान जिसमें हरियाणा में पांचवी और आठवीं की बोर्ड की परीक्षायें न लेने का दृढ़ संकल्प लिया गया था, का हवाला देते हुये सुरेश चन्द्र ने कहा कि यदि बोर्ड घटते राजस्व की तंगी झेल रहा है तो उसे शिक्षा के अधिकार के नियम से झेड़खानी व अपनी मनमानी करते हुये आठवीं के विद्यार्थियों को अपना शिकार नहीं बनाना चाहिये बल्कि अन्य विकल्प तलाशने चाहिये जो कि बोर्ड के साथ साथ स्कूलों, विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के हित में भी हो।

इस अवसर पर एचनएसए के प्रदेशाध्यक्ष रामपाल यादव, वरिष्ठ उपाध्यक्ष रणबीर सिंह,  एचपीएसए  के अध्यक्ष विजेन्द्र मान, करनाल इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष आरएस विर्क, सचिव कुलजिंदर मोहन बाठ, राजन लांबा, विक्रम चौधरी, आरयूपीएसए के अध्यक्ष जितेंद्र अहलावत आदि प्रतिनिधियों ने सरकार के इस रवैये के प्रति अपने विचार व्यक्त किये।

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