पवन बंसल के लिए AAP अनलकी: पंजाब से भी लौटे बैरंग, मनीष बंसल की करारी हार

चंडीगढ़ के कई कांग्रेस नेता पहले ही भांप चुके थे पंजाब का रिजल्ट, बंसल ही गच्चा खा गए सियासी शिफ्टिंग के निर्णय में

CHANDIGARH, 10 MARCH: चंडीगढ़ के रास्ते पंजाब की सत्ता तक पहुंची आम आदमी पार्टी (AAP) ने पंजाब की राजनीति और वहां के सियासी दिग्गजों को तो हिला ही दिया है लेकिन चंडीगढ़ के सबसे बड़े सियासी परिवार को भी लगातार चौथी बार इतना बड़ा झटका दे दिया है कि इस परिवार के राजनीतिक वर्चस्व पर ही अब सवाल उठने शुरू हो गए हैं। आम आदमी पार्टी का जिन्न चंडीगढ़ के पूर्व सांसद एवं केंद्र में मंत्री रहे पवन कुमार बंसल के पीछे इस कदर पड़ा कि पंजाब तक भी पीछा नहीं छोड़ा और वहां भी बंसल को जबरदस्त पटखनी दे मारी। कह सकते हैं कि चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी के आगमन के साथ शुरू हुआ पवन बंसल का दुर्भाग्य पंजाब में जाकर भी सौभाग्य में नहीं बदल पाया और उनके पुत्र मनीष बंसल पंजाब की बरनाला विधानसभा सीट पर बुरी तरह हार गए।

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सुनामी ने जो कहर बरपाया है, उसमें सियासी जमीन से उखड़े दिग्गजों में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रकाश सिंह बादल, नवजोत सिंह सिद्धू जैसों का तो नाम लिया जा रहा है लेकिन एक और जो बड़ा नाम है, वो है पवन कुमार बंसल का, जो कि न केवल पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, बल्कि कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद नेता भी हैं। पंजाब की सियासत में अपने पुत्र मनीष बंसल को लांच करने पहुंचे पवन बंसल को भी आम आदमी पार्टी की सुनामी ने बड़ा झटका दिया है। चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी के हाथों ही लगातार अपनी सियासी जमीन खो रहे पवन बंसल अपने पुत्र मनीष बंसल के बूते पंजाब में अपने परिवार के लिए नई राजनीतिक भूमि बनाने पहुंचे थे लेकिन सियासत के माहिर होने के बावजूद पंजाब की सियासी हवा का रुख नहीं भांप सके और आम आदमी पार्टी ने बंसल को पंजाब के चुनावी मैदान से भी बैरंग लौटा दिया।

बंसल ने चंडीगढ़ में कांग्रेस पर किया एकछत्र राज
करीब 23 साल पहले चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर उम्मीदवारी के लिए पवन कुमार बंसल का सामना तत्कालीन कद्दावर कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी से होता रहा लेकिन पवन कुमार बंसल इन सब पर भारी पड़ते रहे। इसके बाद विनोद शर्मा हरियाणा तो मनीष तिवारी पंजाब की राजनीति में पलायन कर गए तो पवन कुमार बंसल चंडीगढ़ की कांग्रेसी सियासत पर एक छत्र राज करते रहे। इसी के साथ दिल्ली में भी बंसल का कद बढ़ता रहा तो वह चंडीगढ़ की कांग्रेसी राजनीति में निर्विवादित रूप से सर्वमान्य नेता बन गए। स्थिति यह हो गई कि चंडीगढ़ में पवन बंसल का मतलब कांग्रेस और कांग्रेस का मतलब पवन बंसल हो गए लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी की एंट्री से बंसल का विजय रथ रुक गया और वह 15 साल के सांसद कार्यकाल के बाद पहली बार चुनाव हार गए। यहां से आम आदमी पार्टी बंसल की सियासत के लिए ऐसा दुर्भाग्य लेकर आई कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जीत के लिए उन्हें तरसा दिया।

पिछले साल पार्टी में बढ़ा पवन बंसल का कद
लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार हार से निराश पवन बंसल ने आगे चुनाव न लडऩे का भी ऐलान कर दिया था लेकिन बाद के दिनों में बंसल की सियासी गतिविधियों से दिखने लगा कि बंसल ने आगे चुनाव न लडऩे की घोषणा भावना में बहकर कर दी थी। असल में 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पवन बंसल ही यहां कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे लेकिन पिछले साल कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पार्टी के शीर्ष नेता मोतीलाल वोरा के निधन के बाद पवन बंसल को राष्ट्रीय महासचिव (प्रशासन) जैसे बड़े अहम पद की जिम्मेदारी दे दी और फिर गांधी परिवार के बेहद नजदीकी अहमद पटेल के निधन के बाद पवन बंसल को ही राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी बना दिया तो मौजूदा दौर में बंसल गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र नेता के रूप में तो उभरे ही, उसके साथ जिस तरह उनकी दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में व्यस्तता बढ़ गई तो यह तय माना जाने लगा कि पवन कुमार बंसल अब चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर चुनाव लडऩे के लिए समय नहीं निकाल पाएंगे, बल्कि पार्टी उन्हें राज्यसभा सांसद बना सकती है।

निराश बंसल ने अपने पुत्र को किया सियासत में सक्रिय
इस बीच, पवन बंसल ने अपने पुत्र मनीष बंसल को चंडीगढ़ की कांग्रेस राजनीति में सक्रिय कर दिया तो यह माना जाने लगा कि अब मनीष बंसल ही 2024 में कांग्रेस से चंडीगढ़ लोकसभा पर चुनाव लड़ेंगे। गत दिसम्बर-2021 में हुए इस बार के चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में पवन बंसल से ज्यादा मनीष बंसल ही सक्रिय दिखे लेकिन चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने जिस तरह चौकाने वाला प्रदर्शन किया, उसको देखते हुए चंडीगढ़ में कांग्रेस घोर निराशा में डूब गई। पार्टी बिखरी-बिखरी सी दिखने लगी। पूर्व चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा समेत कई कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी में चले गए तो शहर में कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे देविंदर सिंह बबला, उनकी पत्नी एवं पार्षद हरप्रीत कौर, इंटक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलबीर सिंह जैसे नेताओं ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। निगम चुनाव में हार के बाद कई तरह के आरोपों का सामना कर रहे चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष सुभाष चावला भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से आग्रह कर चुके हैं कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से कार्यमुक्त कर दिया जाए। चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी के ही कारण कांग्रेस के हालात ऐसे बन गए कि यहां पार्टी में नेताओं की पहली पंक्ति लगभग खत्म होने के कगार पर है। माना जा रहा है कि इस स्थिति को देखते हुए ही पवन कुमार बंसल ने अपने बेटे मनीष बंसल का राजनीति में औपचारिक पदार्पण 2024 के लोकसभा चुनाव में चंडीगढ़ सीट से कराने की बजाय इस बार के पंजाब विधानसभा चुनाव में बरनाला सीट से कराने का फैसला किया। पवन बंसल खुद मूल रूप से पंजाब के ही निवासी हैं। उनका जन्म पंजाब के सुनाम में हुआ था।

बरनाला का नतीजा पहले ही भांप गए थे चंडीगढ़ के कई कांग्रेस नेता
इसके बावजूद कांग्रेस के ही कई नेता मनीष बंसल को पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ाने के पवन बंसल के निर्णय को शुरू से सही नहीं मान रहे थे लेकिन बंसल की राजनीतिक समझ के आगे कोई खुलकर नहीं बोल पाया। आखिरकार नतीजा वही हुआ, जिसे चंडीगढ़ के कई कांग्रेसी नेता पहले से ही भांप रहे थे। हालांकि चंडीगढ़ के कई कांग्रेस नेताओं ने बरनाला विधानसभा सीट पर मनीष बंसल के चुनाव प्रचार अभियान में हाजिरी भी लगाई। कुछ कांग्रेस नेता तो सिर्फ मनीष बंसल की स्थिति का आंकलन करने गए और लौटकर आम आदमी पार्टी के ही उम्मीदवार के आगे मनीष बंसल की हार का स्पष्ट अनुमान भी जता दिया था लेकिन मनीष बंसल चुनाव परिणाम में तीसरे नंबर पर रहेंगे, इसकी उम्मीद इन नेताओं को भी नहीं थी। मनीष बंसल को मात्र 16750 वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी के गुरमीत सिंह मीत हेयर 64091 वोट लेकर जीते हैं। दूसरे नंबर पर अकाली दल उम्मीदवार कुलवंत सिंह रहे। उन्हें 26990 वोट मिले। मनीष बंसल तीसरे नंबर पर रह गए।

पवन कुमार बंसल के लिए अब आगे क्या?
पवन बंसल की आयु अब 73 वर्ष हो चुकी है और समझा जाता है कि कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में उनकी जिस तरह की जिम्मेदारी तथा व्यस्तता है और पार्टी में उनका जो कद है, उसके मद्देनजर कांग्रेस नेतृत्व उन्हें आने वाले दिनों में राज्यसभा सांसद बना सकता है।

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