आज भारतीय ज्ञान, विज्ञान व अध्यात्म परंपरा पर गहन शोध आवश्यक: डॉ. कृष्ण गोपाल

पंचनद शोध संस्थान का 29वां वार्षिक व्याख्यानमाला चंडीगढ़ में संपन्न, प्राचीन भारत में अध्ययन के विविध आयाम विषय पर डॉ. कृष्ण गोपाल ने दिया व्याख्यान

CHANDIGARH, 19 FEB: जीता हुआ समाज पराधीन समाज के स्वाभिमान, आत्मविश्वास को समाप्त कर देता है। हारा हुआ समाज अपनी परंपराओं को हीन भावना के साथ देखने लगता है। वह शासन करने वाले के लिए सहयोगी की भूमिका में खड़ा हो जाता है लेकिन जब पराजित समाज अपने पूर्वजों की महान परंपरा को याद करते हुए संघर्ष के लिए खड़ा होता है तो परिणाम अपने अनुसार बदल लेता है। अंग्रेजों ने जब भारत को जीता तो सबसे पहले उन्होंने अपना साहित्य देश में लागू किया। अंग्रेजों ने लोगों को पैसा देकर काम पर रखा और प्राचीन भारत की शिक्षा व्यवस्था, शैक्षणिक परिवेश के विरुद्ध साहित्य सृजन को प्रोत्साहित किया। भारत की ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म परंपरा का विस्तृत एवं गहरायी से अध्ययन किया जाना चाहिए। देश ने एक लंबा समय पराधीनता का देखा है। इतिहास गवाह है कि दुनिया का कोई भी देश लंबे संघर्ष के बाद फिर से खड़ा नहीं पाया जबकि लगभग दो हजार वर्ष से अधिक संघर्ष करने एवं हजारों प्रकार के अत्याचार सहने के बाद भी भारत अपने मूल्यों के साथ खड़ा रहा। यह शोध का विषय है कि भारत एक लंबी पराधीनता के बाद भी आज अपने स्वाभिमान के साथ वैश्विक स्तर पर नेतृत्व के लिए सबलता के साथ कैसे खड़ा है ? उक्त बातें ख्यातिप्राप्त दार्शनिक एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ. कृष्ण गोपाल ने ‘प्राचीन भारत में अध्ययन के विविध आयाम’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कही। डॉ. कृष्ण गोपाल जी पंचनद शोध संस्थान, चंडीगढ़  के  29वें वार्षिक व्याख्यानमाला को मुख्यवक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने  कहा की आज आवश्यक है कि अपने देश एवं समाज के बारे में जो सच्चाई है, उस पर से पर्दा हटाया जाए। सभी के सामने सच्चाई को प्रस्तुत किया जाए। इसके लिए भारत के और भारत से संबंधित प्राचीन साहित्यों का गहराई से अध्ययन किया जाए। डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने भाषाशास्त्र पर कहा कि दुनिया की भाषाओं के लिए व्याकरण भारत से गया है। दुनिया के सब्जी भाषाओं के लिए पाणिनी का व्याकरण श्रेष्ठ माना गया है। ध्वनि की सभी प्रकार संस्कृत व्याकरण में मिल जाएंगे लेकिन दूसरे अन्य भाषाओं में ऐसी पूर्णता नहीं पायी जाती है। उन्होंने भारत की प्राचीन कपड़ा उद्योग से संबंधित कौशल की चर्चा करते हुए बताया कि भारत से दुनिया भर में कपड़ों का निर्यात किया जाता था। मिश्र की ममी के साथ जो कपड़ा पाया गया वह भारत का कपड़ा था। भारत मे ऊन पेड़ पर पैदा किया जाता था जबकि पश्चिम के देशों में ऊन के लिए भेड़ पर लोग निर्भर रहते थे। डॉ. गोपाल ने अपने व्याख्यान में बताया कि विदेशियों द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाने के बाद भी  लगभग 45 लाख पांडुलिपि अभी बची है। आज आवश्यकता है उसका अध्ययन कर समाज के सामने प्रस्तुत करने की। उन्होंने प्राचीन कानून व्यवस्था के संदर्भ में कहा कि भारत मे कर्तव्य की कल्पना है। कर्तव्य के अंदर अधिकार निहित है। डर.कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारत की शिक्षा व्यवस्था कौशल यानी लौकिक आधारित एवं आध्यात्मिक विकास में बांटी गई थी जिससे कार्य करते समय व्यक्ति के अंदर लोभ, लाभ का लालच पैदा ना हो पाए। लेकिन जब से केवल अधिकार की बात होने लगी, समस्या पैदा हो गई। उन्होंने कहा कि भारत की शिक्षा व्यवस्था एकांकी नहीं रही है। शनिवार को चंडीगढ़ के सेक्टर 26 स्थित एनआईटीटीटीआर परिसर में आयोजित इस वार्षिक व्याख्यानमाला में ख्यातिप्राप्त दार्शनिक एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ. कृष्ण गोपाल ‘प्राचीन भारत में अध्ययन के विविध आयाम’ विषय पर व्याख्यान दिया। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता हरियाणा विधान सभा के अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने की। अध्यक्षता करते हुए ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि समाज में व्याप्त अविश्वास को विश्वास में बदलने के लिए पंचनद शोध संस्थान द्वारा लगातार कार्य किया जा रहा है।उन्होंने कहा कि वे पंचनद शोध संस्थान के स्थापना काल के बैठकों में शामिल होते रहे है। संस्थान द्वारा संवाद के माध्यम से समाज में सौहार्द के साथ भाईचारा स्थापित की गई। समाज के अलग-अलग विचार मानने वालों के बीच संवाद स्थापित करने का कार्य पंचनद शोध संस्थान द्वारा किया जा रहा है। गुप्ता ने पंचनद के लक्ष्यों पर चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय मूल्यों को समाज मे फैलाने के लिए, विचारों को आदान-प्रदान करने के लिए संस्थान समर्पित है। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में विदेश के युवा अध्ययन करने के लिए भारत आते थे जबकि आज हमारे यहां के युवा विदेश जा रहे है। इस ब्रेनडेन को रोकने की आवश्यकता है।

व्याख्यानमाला में डॉ. गोबिंद बल्लभ ने भारतीय स्थापत्य एवं वास्तु के विविध आयाम, सत्येंद्र गौतम ने भारत की न्याय व्यवस्था, प्रो.मनु सूद ने प्राचीन भारत मे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं डॉ. राकेश भाटिया ने प्राचीन भारत मे गणित विषय पर प्रस्तुति दी। व्याख्यानमाला में अतिथियों का स्वागत एवं परिचय संस्थान के सचिव विक्रम अरोड़ा दी। शोध संस्थान का परिचय ऋषि गोयल जी ने प्रस्तुत की। विषय की प्रस्तावना पंचनद शोध संस्थान के निदेशक डॉ. कृष्ण चंद पांडेय ने प्रस्तुत की जबकि कार्यक्रम का संचालन संस्थान के कोषाध्यक्ष रोहित वासवानी ने की। कार्यक्रम में पंचनद शोध संस्थान की वार्षिक पत्रिका पंचनद शोध पत्रिका के 2022-23 अंक का भी विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया।

पंचनद शोध संस्थान चंडीगढ़ के इस वार्षिक व्याख्यानमाला में  दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लेह के एक हजार से अधिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। शोध संस्थान के चंडीगढ़ मुख्यालय में प्रतिवर्ष सामाजिक एवं समसामयिक मुद्दे पर वार्षिक व्याखानमाला का आयोजन किया जाता है। “एकं सद्विप्रा: बहुधा वदन्ति” सूत्र को अपना आधार बनाकर सभी विचारों का सम्मान करते हुए सत्य की खोज में अनवरत संलग्न संस्थान द्वारा प्रतिमाह अलग-अलग अध्ययन केन्द्रों पर वैचारिक गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। पंचनद शोध संस्थान बौद्धिक विमर्श का मंच है। यह पिछले 40 वर्षों से सामाजिक एवं राष्ट्रहित के मुद्दों पर बुद्धिशील वर्ग के बीच वैचारिक चर्चा एवं विमर्श का आयोजन करता रहा है। वर्त्तमान में संस्थान के 45 केंद्र पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर तथा चंडीगढ़ में सामयिक विषयों पर मासिक गोष्ठियों का आयोजन करते हैं।

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