चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को कैसे मिलता था पैसा और क्या थी पूरी योजना, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी रोक, यहां जानिए सबकुछ

Electoral Bonds CHANDIGARH, 15 FEBRUARY: सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आज चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) की वैधता पर अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगा दी है। आखिर चुनावी बॉन्ड Electoral Bonds क्या होते हैं ? यह योजना देश में कब और क्यों लाई गई थी ? इसमें पैसे लगाने पर क्या रिटर्न मिलता था ? इस योजना में पैसा कैसे लगाया जाता था तथा ये पैसा किसको मिलता था ? यहां जानिए इन सब सवालों के बारे में।

दरअसल, चुनावी बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र है। इसको भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती थी। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से भी चुनावी बॉण्ड खरीद सकता था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड के पात्र थे, जिन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों। चुनावी बॉण्ड को किसी भी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जा सकता था। यह बॉन्ड नागरिक या कॉरपोरेट कंपनियों की ओर से अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को पैसा दान करने का जरिया था। चुनावी बॉन्ड को फाइनेंशियल (वित्तीय) बिल (2017) के साथ पेश किया गया था। 29 जनवरी-2018 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना को 2018 में अधिसूचित किया था। उसी दिन से इसकी शुरुआत हुई।

चुनावी बॉन्ड हर तिमाही की शुरुआत में सरकार की ओर से 10 दिन की अवधि के लिए बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। इसी बीच बॉन्ड की खरीदारी की जाती थी। सरकार की ओर से चुनावी बॉन्ड की खरीद के लिए जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के पहले 10 दिन तय किए गए थे। लोकसभा चुनाव के वर्ष में सरकार की ओर से 30 दिन की अतिरिक्त अवधि तय किए जाने का प्लान था।

चुनावी बॉन्ड की शुरुआत करते हुए सरकार ने दावा किया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग के मामलों में पारदर्शिता बढ़ेगी। इस बॉन्ड के जरिए अपनी पसंद की पार्टी को चंदा दिया जा सकता था। कोई भी भारतीय नागरिक, कॉरपोरेट और अन्य संस्थाएं चुनावी बॉन्ड खरीद सकते थे और राजनीतिक पार्टियां इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल कर लेती थीं। बैंक चुनावी बॉन्ड उसी ग्राहक को बेचते थे, जिनका केवाईसी वेरिफाइड होता था।

बॉन्ड पर चंदा देने वाले के नाम का जिक्र नहीं होता था। चुनावी बॉन्ड में निवेश करने वाले को आधिकारिक तौर पर कोई रिटर्न नहीं मिलता था। यह बॉन्ड एक रसीद के समान था। आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसके नाम से इस बॉन्ड को खरीदा जाता था और इसका पैसा संबंधित राजनीतिक दल को मुहैया करा दिया जाता था। राजनीतिक पार्टी को सीधे चंदा देने की जगह चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदे के रूप में दी गई धनराशि पर इनकम टैक्स की धारा 80 जीजीसी और 80जीजीबी के तहत छूट देने का प्रावधान भी था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक बताया और सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना की आलोचना करते हुए कहा कि नागरिकों को राजनीतिक दलों को हो रही फंडिंग की जानकारी मिलना बेहद जरूरी है। चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। हालांकि पीठ में दो अलग-अलग विचार रहे लेकिन पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड का पूरा ब्योरा भारत के चुनाव आयोग को देने का भी आदेश दिया है। चुनाव आयोग यह ब्योरा अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया। कोर्ट ने इस मामले में 31 अक्तूबर से नियमित सुनवाई शुरू की थी। इस दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से दलीलें दी गईं। कोर्ट ने सभी पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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