चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में निर्वाचित होने वाला हर पार्षद दल-बदल करने के लिए कानूनन स्वतंत्र

फरवरी- 2018 में दल-बदल विरोधी प्रावधान सहित कानून में कई संशोधन किए गए थे प्रस्तावित
कानून में प्रावधान न होने बावजूद पार्टी चुनाव-चिन्हों पर करवाया जाता है चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव

CHANDIGARH: 24  दिसम्बर  2021 को  चंडीगढ़ नगर निगम के छठे आम चुनाव के लिए  मतदान  करवाया जाएगा, जबकि  27 दिसम्बर को मतगणना होगी एवं 30 दिसंबर तक समस्त चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाएगा।

बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि चंडीगढ़ नगर निगम के चुनावी नतीजे बेशक कुछ भी रहें, परन्तु जीतने के बाद चंडीगढ़ के सभी 35 वार्डों से निर्वाचित पार्षद (कौंसलर) दल-बदल करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र हैं, क्योंकि चंडीगढ़ पर लागू पंजाब नगर निगम कानून (चंडीगढ़ में विस्तार) अधिनियम-1994, जैसा कि आज तक संशोधित है, में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार हर पार्टी से या निर्दलीय के तौर पर निर्वाचित पार्षद बे रोक-टोक किसी भी राजनीतिक दल में आ-जा सकता है एवं इससे उसकी पार्षद सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

हेमंत कुमार का कहना है कि जिस प्रकार इसी वर्ष पड़ोसी हिमाचल प्रदेश की जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा नगर निगम कानून में संशोधन कर निकाय चुनाव पार्टी चुनाव चिन्हों पर लडऩे एवं स्थानीय नगर निकायों में निर्वाचित सदस्यों (पार्षदों) को पाला-खेमा बदलने से रोकने के लिए दल-बदल विरोधी कानूनी लागू करने संबंधी कानूनी प्रावधान किए गए हैं, वैसा ही कानूनी संशोधन चंडीगढ़ नगर निगम पर लागू कानून में किया जाना चाहिए।

हालांकि करीब चार वर्ष पूर्व फरवरी-2018 में चंडीगढ़ के तत्कालीन गृह एवं स्थानीय स्वशासन सचिव अरुण कुमार गुप्ता ने चंडीगढ़ नगर निगम कानून में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी प्रावधान सहित कई संशोधन करने सम्बन्धी एक ड्राफ्ट बिल चंडीगढ़ नगर निगम की वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक किया गया था परन्तु दुर्भाग्यवश वह सिरे नहीं चढ़ पाया।

हेमंत कुमार ने कानूनी जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दल-बदल विरोधी/रोकथाम कानून है, वह केवल संसद और राज्य विधानमंडलों पर लागू होता है, शहरी स्थानीय निकाय (म्युनिसिपल) संस्थानों जैसे नगर निगमों/परिषदों/ पालिकाओं पर नहीं। इसलिए नगर निकाय के विपक्षी या निर्दलीय पार्षद कभी भी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से मेयर/अध्यक्ष के खेमों/पार्टियों में शामिल हो सकते हैं। हालांकि अगर केंद्र  सरकार चाहती तो बीते चार वर्षो में संसद सत्र के दौरान चंडीगढ़ पर लागू नगर निगम कानून में संशोधन करवाकर पार्षदों द्वारा  दल-बदल करने पर अंकुश लगा सकती थी, जैसे हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने किया है। कर्नाटक में भी वर्ष 1987 में स्थानीय निकायों संस्थानों में निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा दल-बदल रोकथाम के लिए कानून बनाकर लागू किया गया है।

error: Content can\\\'t be selected!!