हुड्डा ने विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में सरकार के दखल पर जताई आपत्ति

कहा- विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के साथ खिलवाड़ कर रही है सरकार
यूजीसी की गाइडलाइंस, नयी शिक्षा नीति और संस्थानों की स्वायत्तता के खिलाफ है सरकार का फैसला

CHANDIGARH: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राज्य विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर से लेकर ग्रुप सी और ग्रुप डी की भर्तियों के सम्बन्ध में आए प्रदेश सरकार के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने विश्वविद्यालयों में हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग और हरियाणा सिविल सेवा आयोग के जरिए भर्ती करने को यूजीसी की गाइडलाइंस और नयी शिक्षा नीति 2020 के विरुद्ध बताया। हुड्डा ने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार नयी शिक्षा नीति के जरिए विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता देने की बात करती है तो वहीं प्रदेश सरकार विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता में दखलअंदाजी कर रही है।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पिछले विधानसभा सत्र में कांग्रेस की तरफ से विश्वविद्यालय के टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ के अंतर-जिला तबादले का मुद्दा उठाया था। उस वक्त सरकार ने आश्वासन दिया था कि वह विश्वविद्यालय के कामकाज में किसी तरह की दखलंदाजी नहीं करेगी, लेकिन वह ऐसा करने से बाज नहीं आ रही है। अगर विश्वविद्यालय जरूरत के मुताबिक अपने स्तर पर तमाम कर्मचारियों की नियुक्ति करने में सक्षम हैं तो सरकार उसके कामकाज में हस्तक्षेप क्यों कर रही है? यहां तक कि सत्ताधारी पार्टी विश्वविद्यालयों में राजनीतिक कार्यक्रम करने से भी परहेज नहीं करती। अब सरकार विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में भी छेड़छाड़ करने जा रही है। इससे संस्था के कामकाज और शिक्षा के स्तर पर विपरीत असर पड़ेगा। पहले ही हरियाणा शिक्षा व्यवस्था में अन्य प्रदेशों से पिछड़ रहा है। पिछले सात सालों में यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भी भारी गिरावट देखी गई है। हमारी अपील है कि स्वायत संस्थाओं को तबाह करने की बजाय सरकार अविलम्ब ये फैसला वापिस ले। अन्यथा सरकार के इस फैसले के खिलाफ विधानसभा में आवाज उठाई जाएगी।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि बीजेपी और बीजेपी-जेजेपी सरकार के दौरान लगातार एचएसएससी और एचपीएससी की भर्तियों में पेपर लीक और नोट के बदले जॉब जैसे घोटाले सामने आ रहे हैं। इन संस्थाओं पर जो भर्तियां करने की जिम्मेदारी हैं, उसे भी अब तक ये संस्थाएं सही से नहीं निभा पाई हैं। ऐसे में विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में दखलंदाजी कर उनकी स्वायत्तता के साथ खिलवाड़ करना ठीक नहीं है।

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