अभिव्यक्ति की गोष्ठी में साहित्यकारों ने प्रेम, स्त्री विमर्श और अंतर्मन को उद्वेलित करती रचनाएं पेश कीं

CHANDIGARH: शहर की सबसे पुरानी साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति ने अप्रैल की साहित्यिक संध्या का आयोजन किया, जिसमें ट्राइसिटी के जाने-माने साहित्यकारों ने भाग लिया। कविताओं और कहानियों के द्वारा जीवन के अनेक महीन पहलुओं को छुआ गया।

डॉ. पंकज मालवीय ने गोष्ठी की शुरुआत में हार जीत नाम की कहानी में विकलांगता में दिमागी संतुलन पर सुंदर विश्लेषण किया। डॉक्टर कैलाश अहलूवालिया ने कहानी, झंझाबात में  स्त्री पुरुष के अनूठे प्रेम संबध को  सुंदरता से दर्शाया।

अश्वनी भीम का मच्छरों पर आधारित व्यंग्य, प्रतिद्वंद्वी भी खूब बन पड़ा। सीमा गुप्ता की कहानी, उसका लौट आना और लौट जाना, स्त्री विमर्श को खंगालता है। डा. विमल कालिया की कहानी, केंचुए किताबों से अति अधिक प्रेम को मनोविज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करती है। कविताओं के दौर में अतृप्त प्रेम को लेकर फकीरी का भाव लेकर आए डा. कैलाश अहलूवालिया अपनी कविता लौटाने का समय में, प्रेम ही के विचित्र पहलुओं को बबिता कपूर ने पेश किया। धीरा खंडेलवाल ने प्रेम, सिखहर, घोसी और घाटा के ताने-बाने में पिरोई रचनाएं प्रस्तुत कीं। विजय कपूर ने अंतर्मन को उद्वेलित करती रचनाओं का पाठ किया। प्रेम विज ने नेता जी और कुर्सी नाम की व्यंग्य कविता प्रस्तुत की।

डॉ. विमल कालिया ने पिता को लेकर सेवानिवृति जैसे विषय पर कविता पेश की। राजिंदर कौर सराओ ने स्त्री विमर्श को कैनवस की जरिए रखा। रश्मि शर्मा ने शीशे को विंब बनाकर गजल पेश की। दर्शना सुभाष पाहवा ने कविता, मन के भाव प्रस्तुत की। परमिंदर सोनी ने तारन गुजराल पर आधारित कविता, क्योंकि वो मां थी और मेरी पसंदीदा साड़ियां पेश की। अश्वनी भीम ने कविता, गलत राह को पढ़ा। सीमा ने गौरैया और मैं तथा समंदर और मैं का पाठ किया। रोहित चावला ने स्वयं से प्रश्न करती कविता, मैं हूं यहां पेश की। डॉ. रोहित साहनी ने बीज और विचित्र सा खेल नाम की कविताएं पेश की। तुषरांशु ने मेरे अलावा सभी एक हैं नाम की क्षणिका सांझा की। डॉक्टर निर्मल सूद ने, भोर होते ही और ढलान, नमिता ने , पितृत्व नाम की कविताएं, डा. दलजीत कौर ने सरस्वती का इंकार नाम का व्यंग्य और लक्ष्य ने कैद नाम की कविता सांझा की।

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