अंतरिक्ष में भारत की शक्ति: अब घूमते हुए उपग्रह को भी कर सकता है नष्ट

NEW DELHI: बीते कुछ वर्षों में धरती से लेकर अंतरिक्ष तक भारत ने कई कीर्तिमान गढ़े हैं। चाहे वह पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचना हो या रॉकेट PSLV-C37 से 104 उपग्रह लॉन्च कर विश्व रिकॉर्ड बनाना हो। ऐसी ही एक उपलब्धि भारत के खाते में है। भारत दुनिया के उन चार देशों में शामिल है, जो A-SAT मिसाइल से पृथ्वी की निचली कक्षाओं में घूमते हुए निष्प्रयोज्य उपग्रहों (सैटेलाइट) को नष्ट कर सकते हैं। भारत ने मार्च 2019 में सफलतापूर्वक इस अभियान को संपन्न किया। इस अभियान को मिशन शक्ति नाम दिया गया था। तब से लेकर अब तक अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं को विकसित करने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, कई सेंसर और सैटेलाइट विकसित कर रहा है।

भारत का मिशन शक्ति अभियान

भारत की सुरक्षा और तकनीकी प्रगति की क्षमता जांचने के उद्देश्य से यह मिशन लॉन्च किया गया था। मार्च 2019 में मिशन शक्ति अभियान के तहत भारत ने पृथ्वी की निचली कक्षा में घूमते हुए लाइव सैटेलाइट (उपग्रह) को नष्ट कर दिया था। दुनिया भर में रूस, अमेरिका और चीन के पास ही यह क्षमता थी और इसे हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बना। यह कार्य एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से किया गया था। भारत में इस मिसाइल का विकास DRDO ने किया है। A-SAT मिसाइल सिस्‍टम, अग्नि मिसाइल और एडवांस्‍ड एयर डिफेंस सिस्‍टम का मिश्रण है। यह दो सॉलिड रॉकेट बूस्टरों सहित तीन चरणों वाली मिसाइल है। मिशन शक्ति के लिये एक छोटे निष्प्रयोज्य उपग्रह को चुना गया और उसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

क्या है पृथ्वी की निचली कक्षा

पृथ्वी की सतह के 160 किमी. से 2000 किमी. की परिधि को पृथ्वी की निचली कक्षा कहते हैं। इस कक्षा में मौसम, निगरानी करने वाले उपग्रह और जासूसी उपग्रहों को स्थापित किया जाता है। पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक होने की वजह से इस ऑर्बिट में किसी उपग्रह को स्थापित करने के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कक्षा की खास बात यह भी है कि इसमें ज्यादा शक्ति वाली संचार प्रणाली को स्थापित किया जा सकता है। ये उपग्रह जिस गति से अपनी कक्षा में घूमते हैं उनका व्यवहार भू-स्थिर की तरह ही होता है।

आसान नहीं है अंतरिक्ष में किसी उपग्रह को नष्ट करना

पृथ्वी की सतह से किसी भी उपग्रह को निशाना बना कर नष्ट करना आसान नहीं होता, क्योंकि वे 300 किमी. से अधिक की दूरी पर स्थित होते हैं। फिर वे इतनी तेजी से पृथ्वी की कक्षा में भ्रमण कर रहे होते हैं कि उन पर निशाना साधने में थोड़ी-सी भी असावधानी से न सिर्फ वार खाली जा सकता है, बल्कि वह किसी अन्य उपग्रह के लिये भी खतरनाक साबित हो सकता है, बावजूद इसके भारत के श्रमसाध्य वैज्ञानिकों ने यह कर दिखाया। ~(PBNS)

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