पंजाब एवं हरियाणा बार एसोसिएशन ने एडवोकेट जनरल अतुल नंदा की सदस्यता रद्द की, बार कौंसिल ने रोक लगाई

कौंसिल ने एसोसिएशन के प्रस्ताव को बताया गैर कानूनी, मैंबरशिप रद्द करने को अन्यायूपर्ण, अनुचित, सख्त और अनावश्यक करार दिया

CHANDIGARH: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने आज पंजाब के एडवोकेट जनरल अतुल नंदा पर बार एसोसिएशन के खिलाफ कार्य करने, कार्यकारिणी के सदस्यों को धमकाने और फिजिकल हियरिंग शुरू करने में रुकावट डालने का आरोप लगाते हुए उनकी बार सदस्यता रद्द कर दी तो पंजाब एवं हरियाणा बार कौंसिल ने इसे अन्यायूपर्ण, अनुचित, सख्त और अनावश्यक करार देते हुए हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के फैसले पर रोक लगा दी। कौंसिल ने बार के कुछ अन्य सदस्यों की मैंबरशिप भी रद्द किये जाने पर रोक लगाते हुए इसको एच.सी.बी.ए. के नियमों का उल्लंघन बताया।

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की जनरल हाउस मीटिंग के बाद बार कौंसिल की तत्काल बुलाई गई मीटिंग में एसोसिएशन के रैजोलूशन ‘ई’ के द्वारा नंदा की मैंबरशिप रद्द किये जाने सम्बन्धी लिए गए फैसले पर चर्चा करते हुए पाया गया कि यह कार्रवाई मनमाने ढंग से की गई है। जनरल हाउस की मीटिंग में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास करते हुए अतुल नंदा की मैंबरशिप को इस आरोप में रद्द किया था कि उन्होंने अदालत की फिजिकल ओपनिंग के विरुद्ध निरंतर काम किया।
एसोसिएशन ने अपने प्रस्ताव के खण्ड ‘ई’ में कहा कि पंजाब के एडवोकेट जनरल अतुल नंदा ने अदालत की फिजिकल ओपनिंग के विरुद्ध जाकर निरंतर काम किया, जो बार एसोसिएशन के हितों के विरुद्ध है और इस कारण उनकी मैंबरशिप पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन से रद्द की जाती है।

बाद में कौंसिल ने पाया कि प्रस्ताव ‘ई’ गैरकानूनी है और एच.सी.बी.ए. के सम्बन्धित नियमों में निर्धारित प्रक्रिया के उल्लंघन में पारित किया गया है। इस कारण सदन सर्वसम्मति से एच.सी.बी.ए. के प्रस्ताव ‘ई’ पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाता है। कौंसिल ने सर्वसम्मति से दोहराया कि नंदा का कामकाज और व्यवहार हमेशा सराहनीय और उदाहरणीय रहा है, खासकर जब भी वकीलों के हितों की बात हो।

नंदा ने भी अपने खिलाफ बार एसोसिएशन के प्रस्ताव को  एक-तरफा और मनमाना बताते हुए इस पर हैरानी जाहिर की। उन्होंने कहा कि कोर्ट में फिजिकल तौर पर सुनवाई करवाने का फैसला मेरे ऊपर नहीं, बल्कि हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि अदालत की तरफ से कोविड-19 के खतरे को ध्यान में रखते हुए फिजिकल तौर पर सुनवाई बंद कर दी गई थी। यह खतरा अभी टला नहीं है और दुनिया अभी भी इसका सामना कर रही है। नंदा ने कहा कि उन्होंने पंजाब के वकीलों के फिजिकल तौर पर पेश होने के लिए सहमति दी है। संयोगवश, सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक फिजिकल तौर पर सुनवाई शुरू नहीं की है।

बार कौंसिल ने अपनी पहली मीटिंग के दौरान विस्तृत विचार-विमर्श के बाद यह प्रस्ताव लिया कि एक तरफ कौंसिल फिजिकल तौर पर सुनवाइयां शुरू करने के प्रस्ताव की पूरी तरह हिमायत करती है और दूसरी तरफ इस सम्बन्धी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का जोरदार समर्थन करती है परन्तु सभी सदस्यों का विचार था कि एच.सी.बी.ए. की तरफ से लिया गया फैसला बहुत ही पक्षपाती, अनुचित और अनावश्यक है।

बार कौंसिल के सदस्यों का विचार था कि नंदा हमेशा वकीलों के हितों के लिए डटे रहे हैं और एच.सी.बी.ए. की तरफ के पास किया प्रस्ताव तथ्यों के विरुद्ध है, क्योंकि नंदा ने कई बार सार्वजनिक तौर पर अदालतों के कामकाज को फिजीकली तौर पर फिर शुरू करने का समर्थन किया था। बताया गया कि 3 जनवरी 2021 को नंदा ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ की बार एसोसिएशनों के प्रधानों और पदाधिकारियों वाले सदन को संबोधन किया, जहां उन्होंने अदालती मामलों की सुनवाई को फिजीकली तौर पर फिर शुरू करने सम्बन्धी सदन के प्रस्ताव की हिमायत की थी।  

कौंसिल ने कहा कि एडवोकेट जनरल पंजाब पहले ही 30 जनवरी 2021 को पत्र लिखकर हाईकोर्ट में मामलों की निजी सुनवाई के दौरान पंजाब की तरफ से कानूनी अफसरों की हाजिरी के लिए सहमति दे चुके थे। कौंसिल ने अपने प्रस्ताव में आगे लिखा है कि मीटिंग में यह भी विचारा गया कि 31 जनवरी को जज साहिबान की प्रशासनिक कमेटी की मीटिंग हाईकोर्ट के कांफ्रैंस हाल में बुलाई गई थी, जिसमें निजी सुनवाई फिर शुरू करने और लम्बित मामलों को हल करने के बारे में बातचीत की गई थी। इस मीटिंग में एच.सी.बी.ए. के पदाधिकारियों को भी विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया था परन्तु उन्होंने मीटिंग में शामिल होने और माननीय जज साहिबान के साथ विचार-विमर्श करने की बजाय अपने आप ही मीटिंग का बायकाट कर दिया। इसके बाद हाउस को जानबूझ कर उक्त तथ्यों से अवगत नहीं करवाया गया और स्पष्ट तौर पर इसे छिपाया गया है।
कौंसिल ने कुछ अन्य सदस्यों की मैंबरशिप रद्द करने पर भी रोक लगाते हुए कहा कि यह प्रस्ताव एच.सी.बी.ए. के नियमों, नियम -10 (डी) और 11 का पूरी तरह उल्लंघन करके पास किया गया, क्योंकि मीटिंग के लिए न तो उपयुक्त नोटिस दिया गया और न ही ऐसी मीटिंग के लिए अपेक्षित कोरम पूरा किया गया।

कौंसिल के प्रस्ताव में कहा गया कि बार के किसी भी मैंबर के विरुद्ध अनुशासनी कार्रवाई उचित नियमों को एकतरफा करके नहीं की जा सकती। यह भी कहा गया कि एच.सी.बी.ए. के मैंबर के चाल-चलन के बारे में सदन में विचार करने के लिए उचित नोटिस वाला खास एजेंडा बांटा जाना लाजिमी है।

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