सकट चौथ कलः पुत्र की रक्षा और दीर्घायु के लिए रखें व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त व पूजा विधि

ANews Office: पुत्र की रक्षा तथा दीर्घायु की कामना से श्री गणेश संकट चौथ का पर्व माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी का पूजन किया जाता है। इस व्रत से संकट व दुख दूर रहते हैं और इच्छाएं व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखकर सायंकाल फलाहार लेती हैं और दूसरे दिन प्रातः सकठ माता पर चढ़ाए गए पकवानों को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं तथा वितरित करती हैं। तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर पहाड़ बनाया जाता है। पूजा के बाद सब कथा सुनते हैं।

चंद्र दर्शन का समय
चन्द्रोदय:
रात्रि 8 बजकर 27 मिनट पर
चतुर्थी तिथि: 31 जनवरी 2021 को रात्रि 8 बजकर 24 मिनट से
1 फरवरी 2021 को शाम 6 बजकर 24 मिनट पर समाप्त

31 जनवरी रविवार को संकष्टी चतुर्थी में चंद्रोदय शाम 8 बजकर 40 मिनट पर होगा। इस कारण सकट चतुर्थी रविवार को मनाई जाएगी। चतुर्थी तिथि रविवार को शाम 8 बजकर 24 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन यानी 1 फरवरी को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। ऐसे में चंद्रोदय की स्थिति 31 जनवरी को ही बनेगी। संकल्प के लिए हाथ में तिल तथा जल लेकर यह मंत्र बोलें- गणपति प्रीतये संकष्ट चतुर्थी व्रत करिश्ये। चंद्रोदय पर गणेश जी की प्रतिमा पर गुड़-तिल के लडडुओं का भेगा लगाएं व चंद्र का पूजन करें। ओम् सोम सोमाय नमः मंत्र से चंद्र को अर्ध्य दें। इस व्रत से संकट दूर होते हैं।

पूजा विधि

  • इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करें।
  • उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • एक चौकी लें, उसे गंगाजल से शुद्ध करें।
  • चौकी पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं।
  • चौकी पर गणेश जी की मूर्ति को विराजमान करें।
  • भगवान गणपति के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें।
  • उसके बाद तिलक करें।
  • भगवान गणेश को पीले-फूल की माला अर्पित करें।
  • भगवान गणेश जी को दूर्वा भी अर्पित करें।
  • गणेश जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
  • गणेश जी की आरती करें।शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत को पूरा करें।

व्रत कथा
प्राचीन काल में एक कुम्हार के यहां बर्तन बनाकर आवां अर्थात अग्नि की भट्ठी नहीं पकती थी। उसने राजा के पुरोहित से कारण पूछा तो उसने कहा कि यदि आवां में एक बच्चे की बलि देंगे तो वह पक जाएगी। राजा का आदेश हुआ और हर परिवार से एक बच्चे को ले जाया जाने लगा। एक वृद्धा के एकमात्र पुत्र की बारी आई तो वह घबरा गई कि सकठ के दिन उसे पुत्र वियोग सहना पड़ेगा। वृद्धा को एक उपाय सूझा। उसने सकठ की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर पुत्र से कहा कि भगवान का नाम लेकर आवां में बैठ जाना। सकठ माता रक्षा करेंगी। वृद्धा ने सकठ माता की आराधना की और कुम्हार की भटठी एक रात में ही पक गई तथा उसका पुत्र भी जीवित तथा सुरक्षित आ गया। तब से आज तक माता सकठ की पूजा एवं व्रत का विधान चला आ रहा है।

वर्तमान में यह व्रत पुत्र की हर प्रकार से रक्षा व दीर्घायु के लिए रखा जाता है। आधुनिक समय में यह पर्व पुत्र रक्षा के लिए एक सांकेतिक व प्रतीकात्मक पर्व है। प्राचीन काल हो या आधुनिक युग, पुत्र की रक्षा कौन माता नहीं चाहेगी? शिव कथाओं के अनुसार पार्वती के उबटन से बने गणेश जी घर पर पहरा दे रहे थे। उसी समय शिवजी वहां पधारे, पार्वती स्नानागार में थीं। शिव जी को गणेश जी ने घर में प्रवेश से रोका। इस पर भोलेनाथ और गणेश जी में भयंकर युद्ध हुआ। क्रोध में शिवजी ने त्रिशूल से बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। गणेश जी की चीत्कार से पार्वती बाहर आईं और सारा दृश्य देखकर दुखी हो गईं तथा शिव जी से पुत्र को जीवित करने का आग्रह करने लगीं। इस पर नंदी ने एक दूसरे उलट दिशा में सो रहे हथिनी के शिशु के सिर को लाकर शिवजी को दिया। हाथी के शिशु के सिर को गणेश जी के धड़ से लगाकर शिवजी ने उन्हें जीवित किया।

  • मदन गुप्ता सपाटू, 458, सैक्टर-10 पंचकूला, मो.- 98156 19620
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