आज की कविताः डर

लोग डरते हैं भूत और प्रेतों सेमैं डरती हूं धरती के उन लोगों सेजो अपनों का खून बहा रहे हैंबलात्कारियों के कंधे से कंधामिला रहे हैं औरलोगों को ज़िंदा जला रहे हैं। लोग डरते हैं, गरीबी से, बदहाली सेमैं डरती हूं, अमीरी से, खुशहाली सेजो भाई को भाई कादुश्मन बना रही हैनाते-रिश्ते तुड़वा रही हैप्यार … Continue reading आज की कविताः डर