किसानों के साथ नेताओं की आवाज भी दबाने में जुटी केंद्र सरकारः परनीत कौर

कहा- किसानों की आवाज राष्ट्रपति तक न पहुंचने देना जनप्रतिनिधियों के अधिकारों पर डाका

CHANDIGARH: सांसद एवं पूर्व केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर ने केंद्र सरकार द्वारा किसानों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों की आवाज़ को दबाने की कड़े शब्दों में निंदा की है। मौजूदा हालात को उन्होंने देश के सभी अन्नदाताओं की तोहीन बताया है।

दिल्ली के मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन से रिहा होने के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में पटियाला के सांसद परनीत कौर ने कहा कि आज कांग्रेस के राज्यसभा लोकसभा सदस्य और केंद्रीय वर्किंग कमेटी और यूथ कांग्रेस के नेता ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के कार्यालय से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की अध्यक्षता में देश के राष्ट्रपति को दो करोड़ किसानों द्वारा काले कृषि कानून रद्द करने की पटीशन सौंपने के लिए पैदल चले थे, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इन जनप्रतिनिधियों को एआईसीसी के कार्यालय के बाहर ही बेरीगेट्स लगाकर रोक लिया गया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेसी नेताओं द्वारा तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को ऑडिशन देने की अनुमति मिलने के बाद राष्ट्रपति भवन के गेट के बाहर तक जाने की मांग को भी दरकिनार कर दिया गया।

परनीत कौर ने कहा कि केंद्र सरकार का आदेश के अन्नदाता के प्रति यह उदासीन रवैया देश के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे अन्नदाता हमारा सम्मान हैं और हम तब तक चैन की साँस नहीं लेंगे जब तक उनकी मांग नहीं मानी जाएगी। उन्होंने कहा कि पंजाब कांग्रेस राज्य के खेती अर्थव्यवस्था और किसानी को तबाह करने वाले इन काले कानूनों और भाजपा की अध्यक्षता वाली केंद्र सरकार के किसान विरोधी मंसूबों को किसी भी हालत में सफल नहीं होने देंगे।

परनीत कौर ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा हड्डी गला देने वाली सर्दी में दिल्ली अपने अधिकार की मांग को लेकर बैठे किसानों के परिवारों की आपात सहायता के लिए हेल्पलाइन 1091 और पुलिस हेल्पलाइन 112 चलाने के फैसले की भरपूर प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे पहले भी पंजाब सरकार के सामने संघर्ष के दौरान अन्नदाताओं के परिवार के साथ पूरी तरह से खड़ी हुई है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काले खेती कानूनों को तुरंत प्रभाव से वापस लेने के लिए  कहा है। उन्होंने कहा कि देश के अन्न उत्पादन में मांगने वाले से आत्मनिर्भर बनाने वाले किसानों की भावना का सम्मान किया जाए ना के उन्हें दिल्ली बॉर्डर की सडक़ों पर धरने पर बैठने के लिए मजबूर किया जाए।

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