हरियाणा की गूंगी-बहरी सरकार के सामने ‘पोर्टल हटाओ-खेती बचाओ’ का नारा बुलंद कर रहे हैं किसानः हुड्डा

पूर्व मुख्यमंत्री बोले- सिर्फ 20% किसानों को मिला नाममात्र मुआवजा, 80% आंदोलन के लिए मजबूर

CHANDIGARH, 29 JUNE: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि बीजेपी-जेजेपी सरकार किसानों को मुआवजा, एमएसपी और समय पर खाद देने के मामले में पूरी तरह विफल साबित हुई है। लंबे आंदोलन के बाद सरकार ने सूरजमुखी के किसानों की फसल एमएसपी पर खरीदने का वादा किया था। लेकिन खुद के वादे से मुकरते हुए सरकार ने पोर्टल ही बंद कर दिया। अब किसान अपनी फसल बेचने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इसी तरह 1962 रुपए एमएसपी वाली मक्का एक हजार से भी कम रेट पर पिट रही है। इससे पहले सरसों, धान और गेहूं के किसानों को भी घाटे में अपनी फसल बेचने पड़ी थी। हैरानी की बात है कि हर मामले में पोर्टल सिस्टम फेल होने के बाद सरकार अब इसे खाद पर भी थोपना चाहती है। यानी जो पोर्टल व्यवस्था किसानों को एमएसपी और मुआवजे से वंचित कर रही थी, वह अब खाद से भी वंचित करने जा रही है।

मुआवजे के मुद्दे पर बोलते हुए हुड्डा ने कहा कि उन्हें जो डर था आखिरकार वहीं हुआ। बार-बार मांग किए जाने के बावजूद बीजेपी-जेजेपी ने किसानों को मुआवजा नहीं दिया। एक बार फिर जानबूझकर सरकार किसानों को आंदोलन के लिए मजबूर कर रही है। चरखी दादरी समेत प्रदेशभर के किसानों का आरोप है कि सरकार ने पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश से हुए नुकसान की एवज में बमुश्किल 20% किसानों को ही नाममात्र मुआवजा दिया है। 80% किसानों को मुआवजा देने से सरकार ने इनकार कर दिया। इसके लिए सरकार ने मुआवजे के लिए जानबूझकर ऐसे मानक बनाए और शर्तें थोपी, जिसके चलते 80% किसान मुआवजे की योग्यता के दायरे से बाहर निकल गए।

पूर्व मुख्यमंत्री के पास पहुंची किसानों की शिकायतों के मुताबिक अबकी बार रबी सीजन के दौरान सर्दी के प्रकोप एवं ओलावृष्टि से खराब हुई फसलों का मुआवजा लेने के लिए ऑनलाइन पोर्टल ‘क्षति पूर्ति’ पर शिकायत दर्ज कराने वाले 80% किसानों को मुआवजे से वंचित रखा गया है, जबकि पूर्व की सभी सरकारें पटवारी द्वारा तैयार की गई एपीआर स्पेशल गिरदावरी की रिपोर्ट के आधार पर किसानों को मुआवजा देती आई हैं। चरखी दादरी समेत विभिन्न जिलों के किसान उसी पद्धति से मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं और गूंगी बहरी सरकार के सामने ‘पोर्टल हटाओ, खेती बचाओ’ का नारा लगा रहे हैं।

किसानों ने बताया है कि सरकार ने 5 एकड़ से ऊपर खेती करने वालों को समृद्ध किसान मानकर फसल खराबे का मुआवजा नहीं देने की एक नई शर्त लागू की है। इस शर्त के कारण भूमिहीन, ठेके और माल बटाई पर खेती करने वाले किसानों को भी मुआवजा नहीं मिल पा रहा। इतना ही नहीं, जिन किसानों ने खराबे से बची हुई अपनी गेहूं व सरसों इत्यादि की फसल को बेच दिया, उन किसानों को भी सरकार ने मुआवजा नहीं दिया। छोटी जोत यानी 2 एकड़ से कम पर खेती करने वाले छोटे किसान ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण ही नहीं करवाते, इसलिए वो भी मुआवजे से वंचित रह गए।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सब्जी उत्पादक किसानों की तरफ भी सरकार का ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि टमाटर जब तक किसानों के खेतों में था तब वह ₹1 से लेकर ₹5 प्रति किलो के रेट पर पिट रहा था। किसानों की लागत तक पूरी नहीं हो पाई थी। लेकिन जैसे ही टमाटर किसान के खेत से व्यापारियों के गोदाम में पहुंचा तो 100 रुपए से प्रति किलो से ज्यादा रेट पर बिक रहा है। स्पष्ट है कि सरकार ना किसानों के अधिकारों का संरक्षण कर पा रही है और ना ही आम जनता को राहत दे पा रही है।

नेता प्रतिपक्ष ने बीजेपी-जेजेपी सरकार को नसीहत दी है कि वो किसानों के साथ ‘पोर्टल-पोर्टल’ खेलना बंद करे और सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित करे। इसी तरह बार-बार मौसम की मार झेल रहे किसानों को समय पर उचित मुआवजा दे। प्रदेश में मौजूदा सरकार अगर ऐसा नहीं करती है तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर किसानों को एमएसपी की गारंटी के साथ उचित मुआवजे की व्यवस्था की जाएगी। ‘नो प्रॉफिट – नो लॉस’ के सिद्धांत पर काम करने वाली सरकारी कंपनियों द्वारा किसानों को बीमा की सुविधा दी जाएगी। क्योंकि मौजूदा सरकार द्वारा लागू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सिर्फ निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का जरिया है। बीमा कंपनियां हजारों करोड का मुनाफा कूट रही हैं और किसान मुआवजे के लिए धरने-प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हैं।

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