आज की कविताः मेरे दिल का ख्याल

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है,कि- हम औरतों को भीये इज़ाज़त होती किघूम सकें टोली में,पी सकें चाय कुल्हड़ मेंकिसी सड़क के किनारेचाय की दुकान पर,खड़े होकर बतियाएं, मजे उड़ाएंउंगली में बीड़ी दबालंबे-लंबे कश लेकरधुएं के छल्ले उड़ाएंऔर लंबी सांस लेकर कहेंयार-आज आफिस की मीटिंग मेंनए प्रोजेक्ट ने बहस पकड़ी थी,काम बहुत था,खड़े-खड़े टांगें […]

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आज की कविताः बा

बा तुम थींबापू की छायादेश व घर कोधुरी पे साधाबापू के, बापू बनने कीऐतिहासिक प्रक्रिया में साथईंट बनी वो नींव कीसदा रही वो साथ। चाहे नहीं था पढ़ना आयापर बापू का साथ निभायासात वर्ष की उम्र में हो गईबापू संग सगाईतेरह वर्ष की उम्र में हो गईपिता के घर से विदाई। उन्नीस वर्ष की आयु

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आज की कविताः डर

लोग डरते हैं भूत और प्रेतों सेमैं डरती हूं धरती के उन लोगों सेजो अपनों का खून बहा रहे हैंबलात्कारियों के कंधे से कंधामिला रहे हैं औरलोगों को ज़िंदा जला रहे हैं। लोग डरते हैं, गरीबी से, बदहाली सेमैं डरती हूं, अमीरी से, खुशहाली सेजो भाई को भाई कादुश्मन बना रही हैनाते-रिश्ते तुड़वा रही हैप्यार

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आज की कविताः मैं रिश्ते निभा नहीं पाई…

कोशिश तो बहुत की मैंनेमोहब्बत भी बहुत निभाईखुद से बहुत किया झगड़ाचुप रही कुछ बोल न पाईसुनती रही चुपचाप सदाकभी आवाज नहीं उठाईइसीलिए अच्छी कहलाई। कहलाई मैं बुरी तभीज्यों ही थी आवाज उठाईक्या करती इज्जत थी प्यारीआत्म सम्मान से भरी खुमारीगिरगिट से बदलते रंगबेगैरतों के पाखंडमेरी गैरत भुला न पाईउनके झूठे वादे कसमेंभीतर अपने उतार

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आज की कविताः खामोशी, खामोश हो जाएगी…

जिद तुम्हारी टूट जाएगीजब याद हमारीकेवल याद बन जाएगी। तुम चुपके सेमेरी खामोशी पढ़नाखामोशी जबखामोश हो जाएगी। मजा हैबदल जाने मेंबदला लेने में नहींबदल गए हम तोफितरत बदल जाएगी। खोने का अहसास है क्यापूछो मेरे दिल से जराकहना बहुत चाहा मगरचुप रहे हम सदा। नए रिश्ते जुड़ते हैंपुराने टूटने के बाददिल बहुत रोता हैदर्द फूटने

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आज की कविताः कहानी किसान की

रात के पिछले पहर मेंहल की हत्थीहाथ में पकड़ करखेतों की पगडंडी परकदम बढ़ाता चला जा रहा हैबादल जिसके मीत हैंखेत जीत के गीत हैंखुद भूखा रहकर वोजहां का पेट भरता हैवर्षा, धूप, आंधी, सर्दीकोहरा भरी कड़कती ठंडी रात मेंदुनिया को सुख पहुंचाने कोमेहनत से नहीं डरता हैउसका नाम किसान है। जिसका नाम किसान हैआज

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आज की कविताः झंडा ऊंचा रहे हमारा…

झंडा ऊंचा रहे हमाराअमर रहे गणतंत्र हमाराछब्बीस जनवरी आई हैयही संदेशा लाई है। झंडा वंदन किया सभी नेजन-गण-मन मिल गाया हैरंग-बिरंगे गुब्बारों नेसबका मन हर्षाया है। भांति-भांति की छटा झांकियोंकी हर मन को भायी हैछब्बीस जनवरी आई हैबंटती आज मिठाई है। झंडा फहरा रहा भवनों परहर घर पर मैदानों मेंइसकी छटा निराली देखोजोश भरे जवानों

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आज की कविताः मैं समझ नहीं पाई…

प्रसव पीड़ा को सहती हुईउसकी चीखपहुंच गई वहांजहां निवास करती हैसृष्टि।निढाल होपरास्त सा महसूसकरती हैजब पता चलता हैकिपैदा हुई है बेटी।क्योंकिबेटी के आने सेन होता है कोईखुशन मिलती है बधाईपड़ी रहती हैअकेलीछा जाता हैसन्नाटा चारों ओरहो जाते हैं सब खामोश।न कोई पूछता हैन बूझता हैन पास आता हैन हाल पूछता हैबस मिलती हैसबसे जुदाई।बेटा होतातो

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आज की कविताः पेड़ होना परम्परा है…

जैसे पेड़ का जुडऩा जरूरी है धरती सेलहरों का जुडना जरूरी है नदी सेऔर धूप का जुडऩा जरूरी है सूरज सेवैसे ही आदमी का जुडना जरूरी है परम्परा सेपेड़, लहरें और धूपधरती की शाश्वत परम्परायेंही तो हैं दरअसल पिताजैसे नींव है आदमी कीवैसे ही परम्परा नींव हैपिता की जैसे धरती का अस्तित्व सूरज सेवैसे ही

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